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________________ 58 1 जैन दर्शन में आचार मीमांसा । साध्य ( आत्म-हित ) खपने से सधता है । साध्य तपने से ही सधता है' 1 १० 99 इस शरीर को खपा इस शरीर को तपा अभय लोक-विजय का मार्ग अभय है । कोई भी व्यक्ति सर्वदा शस्त्र - प्रयोग । नहीं करता, किन्तु शस्त्रीकरण से दूर नही होता, उससे सब डरते हैं अणुबम की प्रयोग - भूमि केवल जापान है । उसकी भय व्याप्ति सभी राष्ट्रो में है । जो स्वयं अभय होता है, वह दूसरो को अभय दे सकता है । स्वयं भीत दूसरो को अभीत नहीं कर सकता । आत्मानुशासन संसार में जो भी दुःख है, वह शस्त्र से जन्मा हुआ है १३ । संसार में जो भी दुःख है, वह संग और भोग से जन्मा हुआ है १४ । नश्वर सुख के लिए प्रयुक्त क्रूर शस्त्र को जो जानता है, वही शस्त्र का मूल्य जानता है, वही नश्वर सुख के लिए प्रयुक्त क्रूर शस्त्र को जान सकता है १५ । भगवान् ने कहा — गौतम ! तू श्रात्मानुशासन में त्रा । अपने आपको । कामो, इच्छाओ और वासनाओ को जीत । यही दुःख-मुक्ति का मार्ग है ' जीत । यही दुःख-मुक्ति का मार्ग है १७ । लोक का सिद्धान्त देख - कोई जीव दुःख नहीं चाहता । तू भेद में अभेद 'देख, सब जीवो में समता देख । शस्त्र प्रयोग मत कर । दुःख-मुक्ति का मार्ग यही है १८ । कषाय-विजय, काम - विजय या इन्द्रिय-विजय, मनोविजय, शस्त्र - विजय और साम्य-दर्शन ——ये दुःख-मुक्ति के उपाय हैं । जो साम्यदर्शी होता है, वह शस्त्र का प्रयोग नही करता । शस्त्र - विजेता का मन स्थिर हो जाता है । स्थिरचित्त व्यक्ति को इन्द्रियां नहीं सताती । इन्द्रिय-विजेता के कषाय ( क्रोध, मान, माया, लोभ ) स्वयं स्फूर्त नहीं होते । संवर और निर्जरा यह जीव मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ( मन, वाणी
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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