SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन में आचार मोमासा [ ७१ मार्गानुसारी क्रिया का अनुमोदन करते हुए उपाध्याय विनय विजयजी ने लिखा है - "मिथ्यादृशामप्युपकारसारं, संतोपसत्यादि गुणप्रसारम् । मार्गानुसारीत्यनुमोदयामः || ” वदान्यता वैनयिकप्रकारं, श्रुत की न्यूनता के कारण इनके प्रत्याख्यान ( विरति ) को दुष्प्रत्याख्यान भी बताया है । गौतम ने भगवान् से पूछा - भगवन् ! सर्व प्राण, सर्वभूत, सर्वजीव और सर्व सत्व को मारने का कोई प्रत्याख्यान करता है, वह सुप्रत्याख्यात है या दुष्प्रत्याख्नात ? भगवान् ने कहा—गौतम ? सुप्रत्याख्यात भी होता है और दुष्प्रत्याख्यात भी ? गौतम - यह कैसे भगवन् ? भगवान् - - गौतम ! सर्वजीव यावत् सर्वसत्व को मारने का प्रत्याख्यान करने वाला नहीं जानता कि ये जीव हैं, ये जीव है, ये त्रस है, ये स्थावर हैं । उसका प्रत्याख्यात दुष्प्रत्याख्यात होता है और सब जीवो को जाने बिना “सब को मारने का प्रत्याख्यान हैं” यूं बोला जाता है; वह असत्य भाषा है .... "1 •• जो व्यक्ति जीव जीव, त्रम स्थावर को जानता है। और वह सर्वजीव यावत् सर्व सत्व को मारने का प्रत्याख्यान करता है—उसका प्रत्याख्यात सुप्रत्याख्यात होता है और उसका वैसा बोलना सत्य भाषा है ।" इस प्रकार प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यात भी होता है और सुप्रत्याख्यात भी ९ 1 इसका तात्पर्य यह है कि सब जीवो को जाने विना जो व्यक्ति सब जीवो की हिंसा का त्याग करता है, वह त्याग पूरा अर्थ नही रखता । किन्तु वह जितनी दूर तक जानकारी रखता है, हैय को छोड़ता है, वह चारित्र की देशआराधना है । इसीलिए पहले गुणस्थान के अधिकारी को मोक्ष मार्ग का देशआराधक कहा गया है १० | दूसरा गुण स्थान ( सास्वादन - सम्यग् दृष्टि ) दर्शनी ( औपशमिक सम्यक्त्वी ) दर्शन -मोह के अपक्रमण दशा है । सम्यग्उदय से मिथ्या - दर्शनी
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy