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________________ जैन दर्शन में आचार मीमांसा [५१ अशुभ कर्म-पुद्गलो का आकर्षक भी है। इसलिए इसे मुख्य वृत्त्या कई आचार्य जीव-पर्याय मानते हैं, कई अजीव पर्याय । यह विविक्षा-भेद है। नव तत्वो में पहला तत्त्व जीव है और नवा मोक्ष । जीव के दो प्रकार वत लाये गए हैं--(१) संसारी बद्ध और (२) मुक्त ३६ । यहाँ बद्ध-जीव (पहला) और मुक्त जीव नौवॉ तत्त्व है। अजीव जीव प्रतिपक्ष है। वह बद्ध-मुक्त. 'नहीं होता। पर जीव का बन्धन पौद्गलिक होता है। इसलिए माधना के क्रम में अजीव की जानकारी भी आवश्यक है। बन्धन-मुक्ति की जिज्ञासा उत्पन्न होने पर जीव साधक बनता है और साध्य होता है मोक्ष। शेप सारे तत्व साधक या बाधक बनते हैं। पुण्य, पाप और बंध मोक्ष के वाधक हैं। बालव को अपेक्षा-भेद से वाधक और साधक दोनो माना जाता है। शुभ-योग को कभी पानव कहे तो उसे मोक्ष का माधक भी कह सकते हैं। किन्तु प्रालय का कर्म-संग्राहक तप मोक्ष का वाधक ही है । संवर और निर्जरा-ये दो मोक्ष के साधक है। वाधक तत्त्व-(बालव) पॉच हैं-(१) मिथ्यात्व (२) अविरति (३) प्रमाद (४) कपाय (५) योग। जीव में विकार पैदा करने वाले परमाणु मोह कहलाते हैं। दृष्टि-विकार उत्पन्न करने वाले परमाणु दर्शन-मोह हैं । उनके तीन पुञ्ज हैं :(१) मादक (२) अर्ध-मादक (३) अमादक । मादक पुञ्ज के उदय काल में विपरीत-दृष्टि, अर्ध-मादक पुञ्ज के उदयकाल में सन्दिग्ध-दृष्टि, अमादक पुञ्ज के उदयकाल में प्रतिपाति-क्षायोपशमिक-सम्यक् दृष्टि, तीनो पुञ्जों के पूर्ण उपशमन-काल में प्रतिपाति औपशमिक-सम्यक् दृष्टि, तीनो पुञ्जो के पूर्ण वियोग-काल में अप्रतिपाति क्षायिक सम्यक दृष्टि होती है। - चारित्र-विकार उत्पन्न करने वाले परमाणु चारित्र-मोह कहलाते हैं। उनके दो विभाग हैं। (१) कषाय. (२) नो कषाय कपाय को उत्तेजित करने वाले परमाणु । कषाय के चार वर्ग हैं :
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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