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________________ जैन दर्शन में आचार मीमांसा [१४७ पूर्व मान्यता या रूढ़ि के कारण कुछ व्यक्ति या राष्ट्र स्थिति का यथार्थ मूल्य नहीं आंकते या आंकना नही चाहते-वे अतीतदर्शी हैं। __ अतीत-दर्शन के आधार पर वर्तमान (ऋजुसूत्र-नय) की अवहेलना करना निरपेक्ष-नीति है । इसका परिणाम है असामञ्जस्य । इसके निदर्शन जनवादी चीन और उसे मान्यता न देनेवाले राष्ट्र बन सकते हैं। वस्तु का मूल्यांकन करते समय हमारा दृष्टिकोण एवम्भूत होना चाहिए। जो वर्ग वर्तमान में चीन के भू-भाग का शासक नही है, वह उसका सर्व-सत्ता-सम्पन्न प्रभु कैसे होगा ? च्यांग का राष्ट्रवादी चीन और मात्रो का जनवादी चीन एक नहीं है । अवस्था-भेद से नाम-भेद जो होता है, वह मूल्यांकन की महत्त्वपूर्ण दिशा (समभिरूढ़-नय ) है। डलेस ने गोश्रा को पुर्तगाल का उपनिवेश कहा और खलबली मच गई। इस अधिकार-जागरण के युग में उपनिवेश का स्वर एवम्भूत दृष्टिकोण का परिचायक नही है। ___ अमरीकी मजदूर नेता श्री वाल्टर रूथर के शब्दो में "एशिया में अमरीका की विदेश नीति शक्ति और सैनिक गठ-वन्धनो पर आधारित है, अवास्तविक है। अमेरिका ने एशिया की सदभावना को बुरी तरह से खो दिया है। गोत्रा के बारे में अमरीकी परराष्ट्र मन्त्री श्री डलेस ने जो कुछ कहा, इस से स्पष्ट है कि वे एशियाई भावना को नहीं समझते५५ । यह असंदिग्ध सत्य है-शक्ति-प्रयोग निरपेक्षता की मनोवृत्ति का परिणाम है । निरपेक्षता से सद्भावना का अन्त और कटुता का विकास होता है । कटुता की परिसमाप्ति अहिंसा में निहित है। क्रूरता का भाव तीव्र होता है, समन्वय की बात नहीं सूझती । समन्वय और अहिंसा अन्योन्याश्रित हैं। शान्ति से समन्वय और समन्वय से शान्ति होती है। सह-अस्तित्व की धारा प्रभु-सत्ता की दृष्टि से सव स्वतन्त्र राष्ट्र समान हैं किन्तु सामर्थ्य की दृष्टि से सव समान नहीं भी हैं। अमेरिका शस्त्र-बल और धन-बल दोनो से समृद्ध है। रूस सैन्य-वल और श्रम-बल से समृद्ध हैं। चीन और भारत जन-बल से समृद्ध हैं। ब्रिटेन व्यापार-विस्तार की कला से समृद्ध है। कुछ राष्ट्र प्राकृतिक
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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