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________________ १४४ ] जैन दर्शन में आचार मोमांसा १. मूल मानव अधिकारों और संयुक्त राष्ट्र- उद्देश्य-पत्र के उद्देश्यो के प्रयोजनों और सिद्धान्तों के प्रति आदर | २· सभी राष्ट्रो की प्रभु-सत्ता और प्रादेशिक अखण्डता के लिए सम्मान । ३. छोटे बड़े सभी राष्ट्र और जातियो की समानता को मान्यता । ४· अन्य देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना । ५. संयुक्त राष्ट्र- उद्देश्य-पत्र के अनुसार अकेले अथवा सामूहिक रूप से आत्मरक्षा के प्रत्येक राष्ट्र के अधिकार के प्रति आदर । ६• किसी भी बड़ी शक्ति के स्वार्थ की पूर्ति के लिए सामूहिक सुरक्षा के आयोजनों के उपयोग से अलग रहना, एक देश का दूसरे देश पर दवाव न डालना । ७. ऐसे कार्यो - आक्रमण अथवा वल प्रयोग की धमकियों से अलग रहना, जो किसी देश की प्रादेशिक अखण्डता अथवा राजनीतिक स्वाधीनता के विरुद्ध हों । ८. सभी आन्तरिक झगड़ों का शान्तिपूर्ण उपायो से निपटारा करना । ६. पारस्परिक हित एवं उपयोग को प्रोत्साहन देना । १०. न्याय और अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के लिए सम्मान | १३ जून ५५ को नेहरू, बुल्गानिन के संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर हुए । उनमें पंचशील का तीसरा सिद्धान्त अधिक व्यापक रूप में मान्य हुआ है"किसी भी राजनीतिक, आर्थिक अथवा सैद्धान्तिक कारण से एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करना । " इस राजनीतिक नयवाद की दार्शनिक नयवाद और सापेक्षवाद से तुलना कीजिए । १ – कोई भी वस्तु और वस्तु - व्यवस्था स्याद्वाद या सापेक्षवाद की मर्यादा से बाहर नहीं है ४५ | - २- दो विरोधी गुण एक वस्तु में एक साथ रह सकते हैं। 1 उनमें सहानवस्थान ( एक साथ न टिक सके ) जैसा विरोध नही है४६ । ३-जितने वचन-प्रकार हैं उतने ही नय हैं४७ । - ये विशाल ज्ञानसागर के अंश हैं ४८ 1
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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