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________________ जन दर्शन में आचार मीमांसा है। विरक्ति काल में उपवास से अनशन तक की तपस्या आदेय है। उसके बिना वे आत्म-वञ्चना, या आत्म-हत्या के साधन बन जाते हैं । संसार और मोक्ष जैन-दृष्टि के अनुसार राग-द्वेष ही संसार है। ये दोनो कर्म-वीज हैं।४ । ये दोनो मोह से पैदा होते हैं १५। मोह के दो भेद हैं-(१) दर्शन-मोह (२) चारित्र-मोह । दर्शन-मोह तात्त्विक दृष्टि का विपर्यास है । यही संसार-भ्रमण की मूल जड़ है। सम्यग-दर्शन के बिना सम्यग ज्ञान नहीं होता। सम्यग-ज्ञान के विना सम्यक्-चारित्र, नहीं होता, सम्यक-चारित्र के विना मोक्ष नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण नहीं होता। ___चारित्र-मोह आचरण की शुद्धि नहीं होने देता। इससे राग-द्वेष तीव्र बनते हैं, राग-द्वेष से कर्म और कर्म से संसार-इस प्रकार यह चक्र निरन्तर घूमता रहता है। ७ विषय-ग्रहण १ रागद्वेष र अशुद्धभाव - सत्ताउदष कर्मबन्ध S कम-त्रागमन
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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