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________________ १३४] जैन दर्शन में आचार मीमांसा जो आत्मा के अमित्र हैं, वे परमात्मा की उपासना नहीं कर सकते। चैतन्य का सूक्ष्म जगत् जो व्यक्ति सूक्ष्म जीवो का अस्तित्व नहीं मानते, वे अपना अस्तित्व भी नहीं मानते। जो अपना अस्तित्व नहीं मानते हैं, वे ही मूक्ष्म जीवो का अस्तित्व नहीं मानते। वे अनात्मवादी हैं। आत्मवादी ऐसा नहीं करते। वे जैसे अपना अस्तित्व मानते हैं, वैसे ही सूक्ष्म जीवो का अस्तित्व भी मानते मिट्टी का एक ढला, जल की एक बूद, अग्नि का एक कण, कोपल की हिला सके उतनी सी वायु में असंख्य जीव हैं। सुई की नोक टिके, उतनी बनस्पति में असंख्य या अनन्त जीव हैं । ज्ञान और वेदना ( अनुभूति) - जीव के दो विशेष गुण हैं-ज्ञान और वेदना ( सुख-दुःख की अनुभूति )। अमनस्क (जिनके मन नहीं होता, उन) जीवो का ज्ञान अस्पष्ट होता है, वेदना स्पष्ट होती हैं । समनस्क ( जिनके मन होता है, उन) जीवो का ज्ञान और वेदना दोनो स्पष्ट होते हैं३४ । भगवान् ने विशाल ज्ञान चक्षु से देखा और कहा-गौतम ! इन छोटे जीवो में भी सुख-दुख की संवेदना है३५ । अहिंसा का सिद्धान्त प्राणी मात्र को जीना प्रिय है, मौत अप्रिय; सुख प्रिय है, दुःख अप्रिय । इसलिए मतिमान् मनुष्य को किसी का प्राण न लूटना चाहिए। . . जीव-वध न करना ही ज्ञानी के ज्ञान का सार है और यही अहिसा का सिद्धान्त है३७ । . हिंसा चोरी है सूक्ष्म जीव अपने प्राण लूटने की स्वीकृति कब देते हैं ? जो व्यक्ति बलात् उनके प्राण लूटते हैं, वे उनकी चोरी करते हैं। ८ ।
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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