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________________ जैन दर्शन में आचार मीमांसा [१३१ वे नहीं सोचते कि मौत के समय कोई शरण नही देता। जीवन अत्राण है। शस्त्रीकरण का परिणाम शस्त्रीकरण करने वाला, कराने वाला, उसका अनुमोदन करने वाला एक दिशा से दूसरी दिशा में पर्यटन करता है। उनके स्थान निम्न होते हैं :कोई अन्धा होता है तो कोई काना, कोई बहरा होता है तो कोई गूगा, कोई कुबड़ा और कोई बौना, कोई काला और कोई चितकबरा-यू उनका संसार रंग विरंगा होता है । नेतृत्व का महत्त्व जो व्यक्ति शस्त्र प्रयोग के द्वारा दूसरो को जीतना चाहते हैं-वे दिड्मूढ हैं । लोक-विजय के लिए शस्त्रीकरण को प्रोत्साहन देने वाले जनता को घोर अन्धकार में ले जा रहे है। वे कल्याना-कारक नेता नहीं हैं। दिड-मूढ़ नेता और उसका अनुगामी समाज, ये दोनो अन्त मे पछताते हैं । अन्धा अन्धो को सही पथ पर नहीं ले जा सकता। इसलिए नेतृत्व का प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है। सफल नेता वही हो सकता है, जो दूसरो के अधिकारो को कुचले विना निजी स्रोतो को ही विकासशील बनाए। पाण्डित्य जो समय को समझता है, उसका मूल्य अांकता है, वह पण्डित है ११ । वह व्यामूढ़ नहीं बनता। वह समय को समझ कर चलता है। मद व्यकि मोह के भार से दव जाता है। वह न पार-गामी होता है और न पारगामी-न इधर का रहता है और न उधर का१२ । जो व्यक्ति अलोभ से लोभ को जीतते हैं, वे पारगामी है; जन-मानस के सम्राट हैं । लोक-विजय के लिए जन-वल और शस्त्र-वल का सग्रह और प्रयोग करने वाले अदूरदर्शी है१४ । दूरदर्शी- जो होते हैं, वे शस्त्र प्रयोग न करते, न करवाते और न करनेवाले का समर्थन ही करते । लोक-विजय का यही मार्ग है। इसे समझने वाला कही भी नही बंधता। वह अपनी स्वतंत्र बुद्धि और स्वतन्त्र गति से चलता है१५ ।
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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