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________________ १२२] जैन दर्शन में आचार मीमांसा वही उपादान है । जहाँ उपादान है, वहाँ भव है, जहाँ भव है, वहाँ पैदा होना है, जहाँ पैदा होना है, वहाँ बूढ़ा होना, मरना, शोक करना, रोना-पीटना, पीड़ित होना, चिन्तित होना, परेशान होना-सब हैं। इस प्रकार इस सारे के सारे दुःख का समुदय होता है। दुःख निरोध भगवान् महावीर ने कहा- ये अर्थ-शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्शप्रिय भी नही हैं, अप्रिय भी नहीं हैं, हितकर भी नही हैं, अहितकर भी नहीं हैं। ये प्रियता और अप्रियता के निमित्तमात्र हैं। उनके उपादान राग और द्वेष हैं, इस प्रकार अपने में छिपे रोग को जो पकड़ लेता है, उसमें समता या मध्यस्थ-वृत्ति पैदा होती है। उसकी तृष्णा क्षीण हो जाती है। विरक्ति आने के बाद ये अर्थ प्रियता भी पैदा नहीं करते, अप्रियता भी पैदा नहीं करते । जहाँ विरक्ति है, वहॉ विरति है। जहाँ विरति है, वहाँ शान्ति है, जहाँ शान्ति है वहाँ निर्वाण है २९ । सब द्वन्द्व मिट जाते हैं-प्राधि-व्याधि, जन्म-मौत आदि का अन्त होता है, वह शान्ति है। द्वन्द्व के कारण भूतकर्म विलीन हो जाते हैं, वह निरोध है। यही दुःख निरोध है३० । महात्मा बुद्ध ने कहा-काम-तृप्णा और भवत्तृष्णा से मुक्त होने पर प्राणी फिर जन्म ग्रहण नही करता 3 | क्योकि तृष्णा के सम्पूर्ण निरोध से उपादान निरूद्ध हो जाता है। उपादान निरूद्ध हुआ तो भव निरूद्ध । भव निरूद्ध हुआ तो पैदाइस निरूद्ध । पैदा होना निरूद्ध हुआ तो बूढ़ा होना, मरना, शोक करना, रोना-पीटना, पीड़ित होना, चिन्तित होना, परेशान होना-यह सब निरूद्ध हो जाता है। इस प्रकार इस सारे के सारे दुःखस्कन्ध का निरोध होता है। भिक्षुओं ! यह जो रूप का निरोध है, उपशमन है, अस्त होना है-यही दुःख का निरोध है, रोगो का उपशमन है, जरामरण का अस्त होना है। यह जो वेदना का निरोध है, संज्ञा का निरोध है, संस्कारो का निरोध है तथा
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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