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________________ ब्राविड संघ में अनेक प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। उनमें पादिराज और मल्लिषेण विशेष उल्लेखनीय हैं । उनके ग्रन्थों में मन्त्र-तन्त्र के प्रयोग अधिक मिलते हैं । भट्टारक प्रथा का प्रचलन विशेषतः द्राविड संघ से ही हुआ होगा। ३. काष्ठा संघ: काष्ठा संघ की उत्पत्ति मथुरा के समीपवर्ती काष्ठा ग्राम में हुई थी। दर्शनसार के अनुसार वि. सं. ७५३ में इसकी स्थापना विनयसेन के शिष्य कुमारसेन के द्वारा की गई थी। तद्नुसार मयूरपिच्छ के स्थान पर गोपिच्छ रखने की अनुमति दी गई । वि. सं. ८५३ में रामसेन ने माथुर संघ की स्थापना कर गोपिच्छ रखने को भी अनावश्यक बताया है। बुलाकीचन्द के वचनकोश (वि. मं. १७६७) में काष्ठासंघ की उत्पति उमास्वामी के शिष्य लोहाचार्य द्वारा निर्दिण्ट है । माथुर संघ को निष्पिच्छिक कहा गया है। काष्ठासंघ का प्राचीनतम उल्लेख श्रवण बेल्गोला के वि. सं. १११९ के लेख में मिलता है। सुरेन्द्रकीति (वि. सं. १७४७) द्वारा लिखित पट्टावली के अनुसार लगभग १४ वीं शताब्दी तक इस संघ के प्रमुख चार अवान्तर भंद हो गये थे -माथुरगच्छ, वागडगच्छ, लाटवागडगच्छ एवं नन्दितटगच्छ । बारहवीं शती तक के शिलालेखों में ये नन्दितटगच्छ को छोड़कर शेष तीनों गच्छ स्वतन्त्र संघ के रूप में उल्लिखित हैं। उनका उदय क्रमशः मथुरा, बागड (पूर्व गुजरात) और लाट (दक्षिण गुजरात) देश में हुआ था। चतुर्थगच्छ नन्दितट की उत्पत्ति नान्देड़ (महाराष्ट्र) में हुई । दर्शनसार के अनुसार नान्देड़ ही काष्ठा संघ का उद्भव स्थान है । संभव है, इस समय तक उक्त चारों गच्छों का एकीकरण कर उन्हें काष्ठासंघ नाम दे दिया गया हो । इस संघ में जयसेन, महासेन, कुमारमेन, रामसेन सोमकीर्ति, अमितगति आदि जैसे अनेक प्रसिद्ध आचार्य और ग्रन्थकार हुए हैं। अग्रवाल, खण्डेलवाल आदि उपजातियां इसी संघ के अन्तर्गत निर्मित हुई हैं। इस संघ ने स्त्रियों को दीक्षा देने का, झुल्लिकों को वीर्यचर्या का मुनियों को कड़े बालों की पिच्छी रखने का नीर रात्रिभोजन त्याग नामक छठं गुणवत का, विधान किया है। दर्शनपाहुड के अनुसार चाहे दिगम्बर हो या श्वेताम्बर, साधक के लिए समभावी होना ४. यापनीय संघ : दर्शनसार के अनुसार इस संघ की उत्पत्ति वि.मं.२०५ में कल्याण नामा नगर में श्री कलश नामक श्वेताम्बर साधु ने की थी। संघ भेद होने के बाद १. वर्शनसार, ३४-३६. २. अन्य प्रति के अनुसार यह तिषि वि. सं. ७०५ है।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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