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________________ ४९ ३. गच्छ - चित्रकूट, होतगे, तगरिक, होगरि, पारिजात, मेषपाषाण, तित्रिणीक, सरस्वती, पुस्तक, वक्रगच्छ आदि । ४. संघ -नविरसंघ, मयूरसंघ, किचूरसंघ, कोशलनूरसंघ, गनेश्वरसंघ, गोडसंघ, श्रीसंघ, सिंहसंघ, परतूरसंघ आदि । ५. गण - बलात्कार, सूरस्थ, कालोग्र, उदार, योगरिय, पुलागवृक्ष, मूलगण, पंकुर, देशी गण आदि । ये गण दक्षिण भारत में अधिक पाये जाते हैं, उत्तर भारत में कम । उनमें प्रधानतः उल्लेखनीय हैं- कोण्डकुन्दान्वय, सरस्वती पुस्तक गच्छ, सूरस्थगण, क्राणुरगण एवं बलात्कार गण । कोण्डकुन्दान्वय का ही रूपान्तर कुन्दकुन्दान्वय हैं, जिसका सम्बन्ध स्पष्टत: आचार्य कुन्दकुन्द से है । यह अन्वय देशीगण के अन्तर्गत गिना जाता है । इस देशीगण का उद्भव लगभग ९ वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में देश नामक ग्राम ( पश्चिमघाट के उच्चभूमिभाग और गोदावरी के बीच) में हुआ था । कर्नाटक प्रान्त में इस गण का विशेष विकास १०-११ वीं शताब्दी तक हो गया था । गच्छ, 1 मूलसंघ के अन्य प्रसिद्ध गणों में सूरस्थगण क्राणूरगण और बलात्कारगण विशेष उल्लेखनीय है । सूरस्थगण सौराष्ट्र, धारवाड़ और बीजापुर जिले में लगभग १३ वीं शती तक अधिक लोकप्रिय रहा है । क्राणूरगण का अस्तित्व १४वीं शती तक उपलब्ध होता है । इसकी तीन शाखायें थी । तन्त्रिणी मैषपाषाणगच्छ और पुस्तकगच्छ । 'बलात्कार गण' के प्रभाव से ये शालायें हतप्रभ हो गई थीं । इसके अनुयायी भट्टारक पद्मनन्दि को अपना प्रधान आचार्य मानते रहे हैं । पद्मनन्दी संभवत: आचार्य कुन्दकुन्द का द्वितीय नाम था । बलात्कार गण का उद्भव बलगार ग्राम में हुआ था। कहा जाता है कि बलात्कार गण के उद्भावक पद्मनन्दी ने गिरनार पर पाषाण से निर्मित सरस्वती को वाचाल कर दिया । इसलिए बलात्कार गण के 'सारस्वतगच्छ' का उदय हुआ । इसका सर्वप्रथम उल्लेख शक के शिलालेख में मिलता है । कर्णाटक प्रान्त में इस गण का विकास अधिक हुआ है पर इसकी शाखायें कारंजा, मलयखेड, लातूर, देहली, अजमेर, जयपुर, सुस्त, ईडर, नागौर, सोनागिर आदि स्थानों पर भी स्थापित हुई हैं। भट्टारक पद्मनन्दी और सकलकीर्ति आदि जैसे कुशल साहित्यकार इसी बलात्कार गण में हुए हैं। गुजरात, राजस्थान मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में उस बलात्कार गणका कार्यक्षेत्र अधिक रहा है। इसको एक अन्य शाखा सेनगन को परायें अन्तर्गत ही एक सं. ९९३ - ९९४
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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