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________________ कुछेक वर्षों पूर्व भारतीय ज्ञानपीठ से डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री द्वारा सम्पादित एवं अनुवादित भद्रबाहु संहिता का प्रकाशन हुआ था। उसकी प्रस्तावना में स्व. डॉ. शास्त्री ने एक स्थान पर भद्रबाहु को वराहमिहिर से प्रभावित बताया। दूसरे स्थान पर उन्होंने लिखा कि कुछ विषयों का वर्णन वाराहमिहिर से भी अधिक भद्रबाहु संहिता में मिलता है और यही नवीनता प्राचीनता की पोषिका है। फलतः भद्रबाहु वराहमिहिर के पूर्ववर्ती भी हो सकते हैं और अन्त में डॉ. शास्त्रीने इस कृति का समय ८-९ वीं शती भी बता दिया। इन तीन मतों में कोन-सा मत उनका माना जाय, निश्चित नहीं किया जा सकता। लगता है, वे स्वयं इस समय की परिधि को निश्चित नहीं कर पाये। इस सन्दर्भ में मेरा अपना मत है कि भद्रबाहु ११-१२ वीं शती की होना चाहिए । उसके लेखक न तो श्रुतकेवली भद्रबाहु हैं, न कुन्दकुन्द के साक्षात् गुरु, बोर न ही नियुक्तिकार भद्रबाहु । इनके अतिरिक्त अन्य कोई पञ्चम भद्रबाहु ही होना चाहिए क्योंकि नियुक्तिकार भद्रबाहु की भाषा प्रायः शुद्ध और समीचीन जान पड़ती है जबकि प्रस्तुत ग्रन्थ इस दृष्टि से अस्पष्ट तथा व्याकरण दोषों से परिपूर्ण है। ___'भद्रबाहु संहिता' की रचना ११-१२ वीं शती की है, इस मत के समर्थन में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये जा सकते हैं (१) चातुर्वर्ण्य व्यवस्था तथा वर्ण संकर का उल्लेख भ.सं.द्र में अनेक स्थानों पर विकसित अवस्था में हुआ है । जैन संस्कृति में चातुर्वर्ण्य व्यवस्था जिनसेन द्वारा की गई जिसका परिपोषक रूप सोमदेव के ग्रन्थों में मिलता है। (२) अरिष्टों के वर्णन के प्रसंग में दुर्गाचार्य और एलाचार्य का उल्लेख है। दुर्गाचार्य का ग्रन्थ 'रिष्टसमुच्चय का रचना काल १०३२ ई. है । (३) चन्द्र, वरुण, इन्द्र, बलदेव, प्रद्युम्न, सूर्य, लक्ष्मी, भद्रकाली, इन्द्राणी धन्वन्तरि, परशुराम, रामचन्द्र, तुलसा, गरुड, भूत, अर्हन्त, रुद्र, सूर्य, मुंक्र, द्रोण, इन्द्र, अग्नि, वायु, समूद्र, विश्वकर्मा, प्रजापति, पार्वती, रति बादि की प्रतिमाओं का वर्णन इस ग्रन्थ में है। इन सभी के रूप १२ वीं शती तक विकसित हो चुके थे। (४) भद्रबाहु वचो यथा (इ.-६४), यथावदनुपूर्वशः (९-१) आदि जैसे वाक्यों का प्रयोग मिलता है । इससे स्पष्ट है कि भद्र सं. की रचना श्रुतकेवली भद्रबाहु ने तो नहीं की। उनके अनुसार अन्य किसी भद्रबाह ने की हो अपवा उनके नामपर किसी यता तद्वा विद्वान ने ।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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