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________________ ४१० छठी शताब्दी ई.पू. में समाज विविध सम्प्रदायों और मतवादों की संकीर्ण विचारधारा की पृष्ठभूमि में घुटन भरी सासों से जीरहा था । उसे बाहर आकर समता और सहानुभूति के स्वर खोजने पर भी सुनाई नहीं दे रहे थे। महावीर ने समाज की उस तीव्र अन्तर्वेदना को भलीभांति समझा तथा विश्व को एक सूत्र में अनुस्यूत करने के लिए अहिंसा और अनेकान्त के माध्यम से स्वानुभवगम्य विचारों को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। महावीर की अहिंसा पर विचार करते समय एक प्रश्न प्रायःहर चिन्तक के मन में उठ खड़ा होता है कि संसार में जब युद्ध आवश्यक हो जाता है तो उस समय अहिंसा का साधक कौन सा रूप अपनायेगा? यदि युद्ध नहीं करता है तो आत्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा, दोनों खतरे में पड़ जाती है और यदि युद्ध करता है तो अहिंसक कैसा? इस प्रश्न का भी समाधान जैन चिन्तकों ने किया है। उन्होंने कहा है कि आत्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। चन्द्रगुप्त, चामुण्डराय, खारवेल आदि जैसे धुरन्धर जैन अधिपति योद्धाओं ने शत्रुओं के शताधिक बार दांत खट्टे किये है। जैन साहित्य में जैन राजाओं की युद्धकला पर भी बहुत कुछ लिखा मिलता है। बाद में उन्हीं राजाओं को वैराग्य लेते हुए भी प्रदर्शित किया गया है। यह उनके अनासक्ति भाव का सूचक है। अतः यह सिद्ध है कि रक्षणात्मक हिंसा पाप का कारण नहीं । ऐसी हिंसा को तो वीरता कहा गया है। यः शस्त्रवृत्तिः समरे रिपुः स्याद् यः कण्टको वा निजमण्डलस्य । तमैव अस्त्राणि नृपाः क्षिपन्ति न दीनकानीन कदाशयेषु ।' जगत अनन्त तत्त्वों का पिण्ड है। उसके प्रत्येक तत्व में अनन्त रूप समाहित है जिन्हें पूरी तरह से समझना एक साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं। उसकी ज्ञान की सीमा में तत्त्वों के असीमित रूप युगपत् कैसे प्रतिभासित हो सकते है ? जितने रूप प्रतिभासित होंगे उनमें परस्पर विरोध की संभावना उतनी ही अधिक दिखाई देगी। इसी तथ्य को भ. महावीर ने अनेकान्तवाद की उपस्थापना में स्पष्ट किया है। परस्पर विरोध को बचाने की दृष्टि से अपने कथन के पूर्व 'स्यात्' शब्द का प्रयोग कर पदार्थ में रहने वाले अन्य गुणों को भी अभिव्यक्त कर दिया जाता है। अभिव्यक्ति की इस शैली में - - - १. यशस्तिलक चम्मू
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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