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________________ ३७१ मठ में अर्धमण्डप, सभा मण्डप और मुख मण्डप दक्षिणी विमान प्रकार का है, गर्भगृहों की दोहरी संयोजना है। लक्ष्मेश्वर के शंख जिनालय में चौमुख मंदिराकृति पर चतुष्कोटीय शिखराकृति का अंकन हुआ है। इस मन्दिर में छठी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक की कला का विकास देखा जा सकता है। होयसेल शैली में विमान शैली और रेख नागर प्रासाद शैली का संमिश्रण हुआ है। इसमें हरे रंग का तथा ग्रेनाइट पाषाण का प्रयोग किया गया है। तारकाकार विन्याणरेखा, जगती-पीठ तथा उत्तरी शिखर संयोजना का अनुकरण नहीं दिखता। गर्भालयों का चमकता हुआ पालिश तथा अलंकरणों का संयम देखते ही बनता है। होयसलों ने श्रवण वेलगोला में भी अनेक छोटेबड़े मन्दिरों का निर्माण कराया जिनमें स्थापत्य कला के अनेक रूप मिलते हैं। यहाँ गंगशैली का भी उपयोग हुआ है। हासन जिले का अनलिखित मन्दिर, तुमकूर जिले के नित्तूर की शांतीश्वर-वस्ती, मैसूर जिले के होसहोललु की पार्श्वनाथ वस्ती, बंगलोर जिले के शांतिगत्ते की वर्धमानवस्ती आदि जैन मन्दिर इस शैली के अन्यतम उदाहरण हैं। सेऊणदेश और देवगिरि के यादवों के शासनकाल में जैन स्थापत्यकला के दिग्दर्शक स्थानों में मनमाड़ के समीपवर्ती अंजनेरी गुफामन्दिरों का नाम उल्लेखनीय है जहाँ एलोरा की गुफाकला का अनुकरण किया गया है। ये मन्दिर नासिकसे २१ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर सुरक्षित है। आन्ध्रप्रदेश में इस काल में अनेक जैन कला केन्द्र बने। जैसे-पोटलाचेरुवु (पाटनचेरु), वर्धमानपुर (वड्डमनी), प्रगतुर, रायदुर्गम, चिप्पगिरि, हनुमकोण्डा, पेड्डतुम्बलम, पुडुर, अडोनी, नयकल्ली, कंबदुर, अमरपुरम्, कोल्लिपाक, मुनुगांडु, पेनुगोण्डा, नेमिम्, भोगपुरम् आदि। इन स्थानों पर प्राप्त स्थापत्य कला से अनेक शैलियों का पता चलता है। सोपान मार्ग और तलपीठ सहित निर्माण की कदम्ब नागर शैली और शिखर चतुष्कोणी पर कल्याणी चालुक्यों की शुकनासा शैली विशेष उल्लेखनीय है। वेमुलवाड पद्मकाशी, विजयवाडा तैलगिरि दुर्ग, कडलायवसदि, कोल्लिपाक आदि स्थान जैन स्थापत्य कला के प्रधान केन्द्र हैं। यहाँ चौबीसियों का निर्माण बहुत लोकप्रिय रहा है। तमिलनाडु स्मारकों में तिरुपत्तिकुण्रम् उल्लेखनीय है जहां के जैन मन्दिरों में पल्लवकाल से विजयनगर काल तक की स्थापत्य शैलियाँ उत्कीर्ण हुई हैं। चन्द्रप्रभ मन्दिर और वर्धमान मन्दिर भी इसी सन्दर्भ में स्मरणीय है।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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