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________________ ३६० धादि स्थानों में जैन गुफायें हैं। जिनमें शय्याओं की भी व्यवस्था की गई है। आन्य प्रदेश के चित्तूर जिले में कनिकार और नगरी नामक समान है महाँ संच-पाण्डव सहित कुछ जैन गुफायें हैं। सित्तनवासल मामक स्थान पर प्राप्त गुफा भी उल्लेखनीय है। चतुर्थ शताब्दी से षष्ठ शताब्दी के बीच जैनधर्म के लिए मथुरा तथा पूर्व भारत में विशेष राजाश्रय नहीं मिल सका । इसका मूल कारण था बोधर्म और वैदिक धर्म का पुनरत्यान होना। साथ ही जैन प्रतिष्ठानों पर जैनेतर धर्मावलम्बियों ने अधिकार कर लिया। उदाहरणतः सोनभण्डार (राजगिरि) पर वैष्णवों का स्वामित्व हो गया और पहाडपुर पर स्थित जैन बिहार को धर्मपालने बौद्ध बिहार के रूप में परिणत कर दिया। इसके बावजूद कुछ निर्माण तो हुमा ही है। विदिशा (मध्यप्रदेश) की उदयगिरि की जैन गुफायें भी उल्केखतीम हैं। इनके आकार-प्रकार से तो लगता है कि ये, ई. पू. की होनी चाहिए पर यहाँ के शिलालेख से पता चलता है कि वह उत्तरकालीन है। मध्यकालीन गुफायें: मध्यकाल में उडीसा की खण्डगिरि की गुफाओं को गुफामन्दिरों का रूप दिया गया। यहां शैल भित्तियों पर जैन प्रतिमाओं का अंकन किया गया। शासन देवी-देवताओं का भी निर्माण हुआ। वारभुजी गुफा में यह प्रक्रिया अधिक हुई। छठी शती से ग्यारहवीं शती के बीच दक्षिणापथ में स्थापत्य कला का पर्याप्त विकास हुमा है। वातापी, पल्लव, पाण्डव, चालुक्य, राष्ट्रकूट, गंग मादि सच्य जैनधर्म को प्रथम बेने वाले थे। इनके राज्यकाल में गुप्तायें गुफा-मदिरों के रूम में परिणत हुई अथवा बनायी गई। इस काल की गुफामों की विशेषता यह है कि उनके महा मंडप और गर्भगृह लगभग वर्गाकार होते हैं, मुखमण्डप या बरामदे आयताकार होते हैं, उनमें स्तम्भ लगे रहते है । मण्डपशैली के इन मन्दिरों में चट्टान पर बने मन्दिरों के कक्ष पर कक्ष बनते चले जाते है। बादामी पहावी पर बना मन्दिर इसी प्रकार का बना है। उसका समय लगभग आठवीं शही का है। प्रवेशद्वार पांच चितकबरी शाखाबों के पक्षों से निर्मित है। इनमें अलंकारिता और अधिक उभरी हुई है। ऐहोल के समीप मेंगुटी पहाड़ी में एक गुफा मन्दिर है जिसमें महावीर की मूर्ति विराजमान है। इसमें वर्गाकार संकीर्ण मण्डप है जिसकी पावं भित्तियों
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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