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________________ ። उत्तरकाल की मूर्तियों में ऋषभदेव, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर तथा अम्बिका, पद्मावती आदि की मूर्तियां प्राप्त होती है। इन मूर्तियों से यह स्पष्ट है कि बंगाल में जैनधर्म अविरल रूप से बना रहा है। भद्रकाली, मानदोइल, राजपारा, उजनी, देउलभिरा, कान्ताबेन, नालकोरा आदि स्थान भी बैन संस्कृति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्तियां यहां अधिक मिली हैं। यह सब इसका प्रमाण है कि बंगाल में जैनधर्म अच्छी स्थिति में रहा है। इसी प्रकार सिन्ध, कश्मीर, पंजाब, असम आदि प्रदेशों में भी जैनधर्म अच्छी स्थिति में था। दक्षिण भारत : विदर्भ, महाराष्ट्र, कोंकण, आंध्र, कर्नाटक, तमिल, तेलगू और मलयालय दक्षिण भारत के प्रधान केन्द्र हैं। जैन परम्परा के अनुसार नाग, ऋक्ष, वानर, किन्नर इत्यादि विद्याधर दक्षिण के निवासी थे। उन्हें ऋषभदेव का अनुयायी बताया गया है । नेमि, विनमि आदि विद्याधर भी ऋषभदेव से सम्बद्ध रहे हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम, हनुमान, बाली, रावण आदि पौराणिक पुरुष परम्परानुसार जैनधर्म के अनुयायी थे। अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और संभवतः महावीर ने भी दक्षिण की यात्रा की है। दक्षिणी भाषाओं और लिपियों में जैनसाहित्य पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित है। आचार्य भद्रबाहु अपने दस हजार शिष्यों के साथ दक्षिण में गये और कटवप्र नामक पर्वत पर तपस्या की । इसी को आज 'श्रमण वेलगोल' कहा जाता है। इतने अधिक शिष्यों के साथ भद्रबाहु की दक्षिण यात्रा करने का स्पष्ट अर्थ यह है कि उस समय यहाँ जैन धर्म बहुत लोकप्रिय रहा होगा। चन्द्रगुप्त ने यहीं जिन दीक्षा ली और सम्प्रति ने उज्जैन से दक्षिण तक जैनधर्म का प्रचार किया। खारवेल ने भोजक और राष्ट्रकूटों को पराजित किया और दक्षिण में जैनधर्म का प्रसार किया। १. विशेष जानकारी के लिए देखिये-डी. के. चक्रवर्ती का लेख-A Survey of Jain Antiquarian Remains in west Bengal, महावीर जयंतीस्मारिका, १९६५, तवा के.के. गांगली के Jaina Images in Bengal a. C. Vol.6, 1939) बोर Jains Art in Bengal, महावीर जयंती स्मारिका, १९६४ मादि लेख ।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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