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________________ २९८ दोनों अपना सकते हैं। इसका मूल उद्देश्य यह है कि साधक आचार से पतित न हो और शरीर से आत्मा को विमुक्त कर दे। आवश्यक नियुक्ति (गाथा१४५९-६०) में कायोत्सर्ग के नव प्रकार बताये है-उत्सृत-उत्सृत (खड़ा), उत्सृत, उत्सृत- निसण्ण, निषण्ण-उत्सृत (बैठा), निषण्ण, निषण्ण-निषण्ण, निषण्ण-उत्सुत (सोया हुआ), निषत्र, और निषन्न-निषन्न ।' अमितगति ने कायोत्सर्ग के चार ही प्रकार बताये है-उत्थित-उत्थित, उत्थित-उपविष्ट, उपविष्ट-उत्थित, और उपविष्ट-उपविष्ट ।' इन प्रकारों का तात्पर्य है कि कायोत्सर्ग खड़े, बैठे और सोते, तीनों अवस्थाओं में किया जा सकता है । चेष्टा कायोत्सर्ग का काल श्वासोच्छवास पर आधारित है और अभिनव कायोत्सर्ग का काल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः एक वर्षका है। देहजाडय शुद्धि, मतिजाड्य शुद्धि, सुख-दुःख तितिक्षा, अनुप्रेक्षा और ध्यान ये पांच कायोत्सर्गके फल हैं।' उसके कुछ दोषों का भी उल्लेख मिलता है। उत्तराध्ययन में प्रत्याख्यान के अनेक भेदों और उनके फलों का वर्णन मिलता है-' (१) संभोग प्रत्याख्यान-एकसाथ बैठकर आहार ग्रहण का त्याग,(२) उपाधि प्रत्याख्यान-वस्त्रादि उपकरणों का त्याग. (३) आहार प्रत्याख्यान महार का त्याग (४) योग प्रत्याख्यान - मन-वचन काय की प्रवृत्ति को रोकना, (५) सद्भाव प्रस्थाख्यान - समस्त पदार्थोंका त्याग कर वीतराग बन जाना, (६) शरीर प्रत्याख्यान-शरीर से ममत्व त्याग, (७) सहाय प्रत्याख्यानसहायता का त्यान, और (८) कषाय प्रत्याख्यान-राग द्वेषादि को छोड़ देना। अनुयोगद्वार में इन षडावश्यकों के स्थान पर क्रमशः निम्नलिखित अन्य संज्ञायों का प्रयोग हुमा है-(१) सावद्ययोग-विरति (समता अथवा सामायिक) (२) उत्कीर्तन (चतुर्विशतिस्तव), (३) गुणवत्प्रतिपत्ति (वन्दना), (४) स्खलितनिन्दना (प्रविक्रमण), (५) व्रणचिकित्सा (कायोत्सर्ग), और (६) गुणधारप (प्रत्याख्यान) २२. गलबनताः ___ साधु अपने शिर और दाढ़ी के बाल हाथों से ही लोच लेते हैं, कभी चा मास में, कभी तीन में और कभी दो में। यह केशलुञ्चन वैराग्य, परीषहजय मी १. उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. १९०-९१ २. अमितगति बावकाचार,८५७-६१ ३. बावश्यक नियुक्ति मात्रा १४६२. ४. प्रवचन सारोबार, गापा २४१-२६२, योगशास्त्र, ३. ५. उत्तराध्ययन, २९.३३-४१
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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