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________________ २९५ गर्हित, सावद्य और अप्रिय वचनों से भी दूर रहता है । वह कभी भी कर्कश, परुष, निष्ठुर आदि भाषा का प्रयोग नहीं करता जिससे किसी को दुःख हो । अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और नयवाद का प्रयोग इसी व्रत के अन्तर्गत आता है । अचौर्य : बिना दी हुई किसी भी चीज को ग्रहण नहीं करना अचौर्य महाव्रत है । चोर के न दया होती है और न लज्जा, न उसकी इन्द्रियाँ वशीभूत होती है और न विश्वसनीय । अचौर्य महाव्रतधारी इन सभी दुर्गुणों से विमुक्त रहता है । ज्ञान और चारित्र में उपयोगी वस्तुओं को ही वह ग्रहण करता हैं । " ब्रह्मचर्य : ज्ञान-दर्शनादि रूप से जो वृद्धि को प्राप्त हो वह 'ब्रह्म' कहलाता है । यहाँ जीव को ब्रह्म कहा गया है । अपने और परके देह से आसक्ति छोड़कर शुद्ध ज्ञान दर्शनादिक स्वभाव रूप आत्मा में जो प्रवृत्ति करता है वह ब्रह्मचर्यव्रती है । वह दश प्रकार के अब्रह्म का त्याग करता है - स्त्रीविषयाभिलाषा, वीर्यविमोचन, संसक्तद्रव्यसेवन, इन्द्रियावलोकन, स्त्रीसत्कार, स्वशरीरसंस्कार, अतीत योगों का स्मरण, अनागत योगों की कामना और इष्टविषयसेवन । स्त्रियों आदि में राग को पैदा करने वाली कथाओं के सुनने का त्याग, उनके मनोहर अंगों को देखने का त्याग, पूर्व योगों के स्मरण का त्याग, गरिष्ठ और इष्ट रस का त्याग तथा अपने शरीर के संस्कार का त्याग, इन पांच भावनाओं से ब्रह्मचर्यव्रत का निरतिचार पूर्वक पालन किया जा सकता है। उत्तराध्ययन में समाधि में बाधक ऐसे ही तत्त्वों को छोड़ने के लिए कहा गया है ।" अपरिग्रह : चेतन और अचेतन, बाह्य और अन्तरंग, सभी प्रकार का परिग्रह छोड़ देना और निर्ममत्व भाव को अंगीकार करना अपरिग्रह महाव्रत है ।" राग, द्वेष, स्नेह, लोभ आदि विकार भाव कर्मबन्ध के कारण होते हैं । और उनका कारण परिग्रह है । परिग्रह का त्याग होने से संसार परिभ्रमण का कारणभूत राग १. नियमसार, ५७; मूलाचार, २९०; उत्तराध्ययन, २५. २४; दशवेकालिक, ४.१२. २. भगवती आराधना, १२०८; उत्तराध्ययन, १९. १८ दशर्वकालिक, ४. १३. ३. वही, ८७९-८८१; अनगारधर्मामृत, ४. ६१. ४. तस्वार्थसूत्र, ७.७. ५. उत्तराध्ययन, १६. १ (गद्य) - दस बम्मचेरसमाहिठाणा पन्नता । ६. वही, १९. ३०; दशर्वकालिक, ४. १५.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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