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________________ (पुरातन जीवयुग), २. मेसेजोइक (मध्य जीवयुग), और ३. केनेजोइक (नव्य जीवयुग)। संम्भव है, आद्य मानव की उत्पत्ति तृतीय युग में हुई हो। मानवीय सभ्यताको पुनः तीन सोपानों में कल्पित किया गया है-(१) प्रारम्भिक पाषाणयुग,(२) पाषाणयुग, तथा (३) धातुयुग। धातुयुगीन सभ्यता काल में ही मानव सही अर्थों में सभ्यता के युग में प्रवेश करता है। इस युग को हम जैन पारिभाषिक शब्द में "कुलकर युग" कह सकते हैं । सम्भव है, इसी युग को 'उत्सपिणी' काल कहा गया हो क्योंकि मानव का विशेष उत्कर्ष इसी युग से प्रारम्भ होता है । इस उत्कर्ष काल को छ: भागों में विभाजित किया गया है-सुषमा-सुषमा, (२) सुषमा, (३) सुषमा-दुषमा, (४) दुषमासुषमा, (५) दुषमा, और (६)दुषमा-दुषमा । एक समय आता है जब सभ्यता का अपकर्ष आरम्भ होता है और उसकी अन्तिम परिणति उत्कर्ष में होती है । इस 'अपसपिणी' काल को भी जैन संस्कृति में छः भागों में विभाजित किया गया है-(१)दुषमा-दुषमा, (२) दुषमा, (३) दुषमा-सुषमा, (४) सुषमा-दुषमा, (५) सुषमा, और (६) सुषमा-सुषमा । इन उत्सपिणी और अपसर्पिणी कालों में करोडों वर्ष होते हैं । इन दोनों कालों के सुषमा-दुषमा काल में २४ तीर्थकरों का प्रादुर्भाव होता है। वर्तमान में उत्सर्पिणी का दुषमा काल चल रहा है। उत्सर्पिणी के तृतीय काल तक भोग-भूमि का समय कहा जा सकता है और उसके उपरान्त कर्मभूमि का समय आता है। कुलकरों का यही कार्यकाल रहा होगा। प्रेसठ शलाका पुरुष : कुलकरों के बाद जैन परम्परा में कुछ ऐसे महनीय व्यक्तित्व हुए हैं जिन्होंने मानव समुदाय को धर्म एवं नीति तत्व का उपदेश दिया। उन्हें शलाका पुरुष कहा जाता है। उनकी कुल संख्या तिलोय पर्णात्त अदि ग्रन्थों में सठ मिलती है : २४ तीर-(१) ऋषभ, (२) अजित,(३) संभव, (४) अभिनन्दन,(५) सुमति, (६) पद्मप्रभ,(७) सुपाव, (८) चन्द्रप्रभ, (९)पुष्पदन्त, (१०) शीतल, (११) श्रेयांस, (१२) वासुपूज्य, (१३)विमल, (१४) अनन्त, (१५) धर्म, (१६) शान्ति, (१७) कुन्यु, (१८) अरह, (१९)मल्लि, (२०) मुनिसुव्रत,(२१) नमि, (२२) नेमि, (२३) पार्श्वनाथ मौर, (२४) वर्धमान अथवा महावीर. १२ पायी-(२५) भरत,(२६) सघर, (२७) मषवा, (२८)सनाकुमार, (२९) शान्ति, (३०) कुन्यु, (३१) अरह, (३२) सुमोम, (३३) पद्म, (३४) हरिषेण, ३५) जयसेन, बोर (३१) ब्रह्मक्त ।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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