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________________ २४९ लिये हुए हैं जो स्वद्रव्यचतुष्टय और परद्रव्यचतुष्टय की दृष्टि से तत्वमीमांसा प्रस्तुत करते हैं । स्याद्वाद समूचे रूप में त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र (Three valued Logic) या बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र का समर्थक है । परन्तु यहाँ यह दृष्टव्य है कि सप्तभंगी को त्रिमूल्यात्मक नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसमें नास्ति नामक भंग एवं अवक्तव्य नामक भंग क्रमशः असत्य एवं अनियतता (false and indeterminate) के सूचक नहीं है । अतः स्याद्वाद त्रिमूल्यात्मक है किन्तु सप्तभंगी द्विमूल्यात्मक है, उसमें असत्य मूल्य नहीं है । उसमें भी प्रमाण सप्तभंगी निश्चित सत्यता की सूचक है और नय सप्तभंगी आंशिक सत्यता की । 'एव' का प्रयोग : यहाँ यह भी दृष्टव्य है कि अनिष्ट अर्थ की निवृत्ति के लिए 'एव' शब्द का भी प्रयोग किया जाता है और इसके प्रयोग से अस्तित्व या नास्तित्व का निषेध कर दिया जाता है । 'स्यात्' का प्रयोग साथ रहने से 'एव' का प्रयोग स्याद्वाद के अनुकूल हो जाता है । 'एव' तीन प्रकार का होता हैi) अयोगव्यवच्छेदक बोधक, जो विशेषण के साथ लगता है, जैसे शंभुः पाण्ड एव, ii) अन्ययोग व्यवच्छेदक बोधक, जो विशेष्य के साथ लगता है, जैसे पार्थ एव धनुर्धरः, और iii) अत्यन्तायोग व्यवच्छेदक बोधक, जो क्रिया के साथ लगता है, जैसे नीलं सरोजं मस्त्येव । सप्तभंगी में 'एवकार' अयोग व्यवच्छेदक माना गया है ।" इसी सन्दर्भ में क्षणभंगवाद, शून्यवाद, विज्ञानवाद आदि का भी खण्डन किया गया है । निष्कर्ष : उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनेकान्तवाद किसी न किसी रूप में समग्र दर्शनों में व्याप्त है। उन सभी दर्शनों के बीच सामञ्जस्य स्थापित करने वाले सिद्धान्त की नितान्त आवश्यकता थी जिसे जनदर्शन ने अनेकान्तवाद अथवा स्याद्वाद सिद्धान्त की स्थापनाकर पूरा किया । आश्चर्य का विषय है कि उसे प्राचीन और आधुनिक जैनेतर दार्शनिकों ने सम्यक् रूप से समझने का प्रयत्न नहीं किया। यदि उसे यथारीत्या समझा जाता तो उसके माध्यम से अनेक समस्यायें सहज ही सुलझ सकती थीं । परस्पर संघर्ष, टकराव १. महावीर जयंती स्मारिका - सप्तभंगी, प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में डॉ. - सागरमल जैन, जयपुर. १९७७. २. घवला, ११.४.२, सप्तभग तरगिणी, पू. २५-२६.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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