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________________ २॥ निमेष म्यवस्था : पदार्य को सही रूप से समझने के लिए निक्षेप की व्यवस्था की गई है। निक्षेप का अर्थ है न्यास (रखना) अथवा विभाजन करना)।' शब्द का जब अर्थ किया जाता है तो विभाजन की चार दृष्टियां होती हैं-नाम, स्थापना, व्य और भाव ।'षट्खण्डागम, धवला आदि ग्रन्यों में कहीं-कहीं छ: भेदों का भी उल्लेख मिलता है-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । इनका अन्तर्भाव यद्यपि द्रव्याथिक और पर्यायाथिकनयों में हो जाता है फिर भी विषय को विभाजितकर उसे और भी स्पष्ट तथा सरलता पूर्वक समझने के लिए निक्षेप की क्यवस्था की गई है। १. नाम निक्षेप-जाति, गुण, क्रिया, नाम आदि निमित्तों की अपेक्षा न करके की जाने वाली संज्ञा 'नाम' है। जैसे-किसी का नाम जितेन्द्र रख दिया जबकि है वह महाभौतिकवादी। २. स्थापना निक्षेप-'यह वही है' इस रूप से तदाकार या मतदाकार वस्तु में किसी की स्थापना करना स्थापना निक्षेप है। जैसे किसी प्रस्तर की मूर्ति को तीर्थकर की मूर्ति मान लेना अथवा शतरंज के मोहरों में हाथी, घोड़ा आदि की स्थापना करना । नाम और स्थापना दोनों निक्षेपों में संज्ञायें रखी जाती हैं पर जो पूज्यत्व भाव स्थापना में स्थापित किया जाता है वह नाम में नहीं होता। ३. द्रव्य निक्षेप-आगामी पर्याय की योग्यता वाले उस पदार्थ को द्रव्य कहते हैं जो उस समय उस पर्याय के अभिमुख हो। जैसे-इन्द्र की प्रतिमा के लिए लाये गये काष्ठ को भी इन्द्र कहना अथवा युवराज को भी राजा कहना । द्रव्य निक्षेप के आगम, नोआगम आदि अनेक भेद-प्रभेदों का उल्लेख मिलता है। ४. भाव निक्षेप-गुण अथवा वर्तमान अवस्था के आधार पर वस्तु को उस नाम से पुकारना भावनिक्षेप है। जैसे सिंहासनासीन व्यक्ति को ही राजा कहना। इसके भी आगम, नोमागम आदि भेदों की व्याख्या ग्रन्थों में मिलती है। ये चारों निक्षेप नयों में अन्तर्भूत हो जाते हैं। भाव का अन्तर्भाव पर्यायाथिक नय में और शेष द्रव्याथिकनय में गभित हो जाते हैं। फिर भी वस्तु १. सन्मति प्रकरण. १. ३२-३४. २. धवला, माग १. गाषा, ११ ३. तत्वाचं सूत्र, १-५. ४. सन्मति प्रकरण, ..
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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