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________________ २११ भेद होते हैं-स्वभाव, व्यापक, कार्य, कारण पूर्वरर, उत्तरपर और सहपर । प्रमाण परीक्षा में हेतु के भेद-प्रभेदों को मिलाकर २२ भेद बताये गये हैं। मीमांसक 'वर्षापत्ति' और 'बा' को भी प्रमाण मानते हैं पर उसका वाताव अनुमान में हो जाता है। अनुमान में हेतु.का जो. पक्षधर्मल बावश्यक होता है वह अर्थापत्ति में आवश्यक नहीं होता। अतः उसे पुषक प्रमाण मानने की.मावश्यकता नहीं है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र में अनुमान : पाश्चात्य तर्कशास्त्र में प्रत्यक्ष और आप्त वचन' की अपेक्षा अनुमान पर अधिक जोर दिया गया है । 'उसकी 'दों विधियां दीपाईह-नियमन विषि (Deduction) और व्याप्ति विधि (Induction):निगमन-विवि सामान्य के शान के आधार पर अल्प सामान्य या विशेष के विषय में बनुमान किया जाता है। जैसे १. सभी द्रव्य उत्पाद-व्याय-ध्रौव्यवान् हैं। २. सभी काष्ठ द्रव्याह। ३. सभी काष्ठ उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यवान् हैं। यहां प्रथम दो वाक्य आधार वाक्य है और अन्तिम वाक्य निगमन वाक्य है । व्याप्तिविधि में कुछ विशेष उदाहरणों की परीक्षा की जाती है बार उनके आधार पर सामान्य सिखान्त का अनुमान कर लिया जाता है। जैसे कि साथ आग का सम्बन्ध देखकर'यह व्याप्ति बना ली जाती है कि बहीबाही धुओ है वहाँ-वहाँ आग है । यहाँ आधार सक्य विशेष उदाहरण है समय है सामान्य सिद्ध व्याप्ति । अनुमान में बाधारवाक्य मीर निष्कर्ष कायदा को मिलाकर युक्ति का प्रयोग किया जाता है। निगमन विधि दो प्रकार की हैनानन्तारानुमान(imastianetstone) और परंपरानुमान (Mediate Inference) एकही र निष्कर्ष निकालने की प्रक्रियाको मनन्तारानुमान कहते हैं और होमबधिक वाक्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया को पानाहा जाता है। निगमन विधि का अन्तिम वाक्य (वीर) मा ASwlenism) कहलाता है। न्याय वाक्य में तीन अवयव होते-विषयमालकाय बारनिकर्षवाक्य । न्यायालय को 'हेतु कहा वास MAREपास्त्र में न्यायवाक्य के सापारपतापस नियम पनायेगये।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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