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________________ सरीस ३२१-३८२ सप्तम परिवर्तः जनधर्म का प्रचार-प्रसार और कला जैनधर्म का प्रचार-प्रसार (३२३), उत्तर भारत (३२३), शिशुनागवंश (३२३), नन्दवंश (३२५), मौर्य साम्राज्य (३२५), शुंगकाल (३२५), सातवाहनकाल (३२६), कुषाण और कुषाणोत्तरफाल (३२६), गुप्तकाल (३२७), गुप्तोत्तरकाल (३२७), गुजरात और काठियावाड़ (३२८), राजस्थान (३२९), मध्यप्रदेश (३३०), बंगाल (३३१), दक्षिण भारत (३१३), मुगलकाल में जैनधर्म (३३७), विदेशों में जैनधर्म (३२९), जैन पुरातत्त्व (३४२),जैनकला एवं स्थापत्य (३४२), १. मूर्तिकला (३४२), उत्तरभारत (३४२), गुप्तकालीन मूर्ति निर्माण (३४३), गुप्तोत्तरकालीन मूर्तिकला (३४४), पूर्व भारत (३४५), पश्चिम भारत (३४६), मध्यभारत (३४८), दक्षिण भारत (३४९), मूर्ति और स्थापत्यकला के सिद्धान्त (३५१), तीर्थकर मूर्तियाँ (३५१), स्वप्न (३५२), मूर्तिचिन्ह, चैत्यवृक्षादि (३५३), शासन देवी-देवता (३५४), सरस्वती देवी (३५५), अष्ट मातृकायें और दिक्पाल (३५५), (३५५), नवग्रह और नैगमेश (३५६), अष्टमंगल (३५६), धातुप्रतिमागें (३५७), २. स्थापत्यकला (३५७), १.मयुरा स्तूप (३५७), २.जैन गुफाएँ (३५८), ३. जैन मन्दिर, (३६२), शैली प्रकार (३६२), पूर्व भारत (३६३), पश्चिम भारत (३६४), मध्यभारत (३६६), उत्तर भारत (३६७), दक्षिण भारत (३६९), ३. चित्रकला (३७२), १. भित्तिचित्र (३७३), ताड़पत्रीय शैली (३७४), २. कर्गलचित्र (३७६), ३. काष्ठचित्र (३७७), ४. पटचित्र (३७७), ५. रंगावलि अथवा धूलिचित्र (३७८), ४ काष्ठशिल्प (३७९), ५. अभिलेखीय व मुद्राशास्त्रीय शिल्प (३८०). अष्टम परिवर्त: ३८३-४१२ जैन समाज व्यवस्था १. वर्ग व्यवस्था (३८५), वर्ण व्यवस्था (३८५), आश्रम व्यवस्था (३८७), विवाह व्यवस्था (३८८), संस्कार (२८९), गर्भान्वय क्रियायें (३९०), दीक्षान्वय क्रियायें (३९१), कन्विय क्रियायें (३९१), नारी की स्थिति (३९२), २.न शिक्षा परति (३९३), शिक्षा (३९४), शिक्षार्थी (३९५), शिक्षक (३९८), ३. सामाणिक महत्व.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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