SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६९ होती है। असंख्यात मावलिका का एक उच्छ्वास, संख्यात भावलिका का एक निःश्वास, हृष्ट, अनवकल्प, और व्याधिरहित एक जन्तु का एक उच्छ्वास बोर निःश्वास एक प्राण कहलाता है। सात प्राण का स्तोक, सात स्तोक का एक.लव, ७७ लव का एक मुहूर्त, तीस मुहर्त का एक अहोरात्र, पन्द्रह महोरात्र का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक बयन, दो अयन का एक संवत्सर, पांच संवत्सर का एक युग, बीस युग का सौ वर्ष, दस सौ वर्ष का एक हजार वर्ष, सौ हजार वर्ष का एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वाङ्ग, चौरासी लाख पूर्वाङ्ग का एक पूर्व और इसी तरह त्रुटितांग, त्रुटित, अडडांग, अडड, अववांग, अवव, हुहुकांग, हुहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलितांग, नलिन, अर्थनियूरांग, अर्थनियूर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, और शीर्षप्रहेलिका होती है। यहां तक गणित है-उसका विषय है । उसके बाद औपमिक काल है। औपमिक काल दो प्रकार का है-पल्योपम और सागरोपम । सुतीक्ष्ण शस्त्र द्वारा जिसे छेदा-भेदा न जा सके वह परमाणु है। केवलियों ने उसे आदिभूत प्रमाण कहा है । अनन्त परमाणु समुदाय के समूहों के मिलने से एक उच्छलफ्णश्लविणका, आठ उच्छलणश्लक्षिणका के मिलने से श्लक्णश्लष्णिका, पाठ श्लक्ष्णप्लषिणका के मिलने से एक ऊर्ध्वरेणु, माठ ऊर्ध्वरेणु के मिलने से एक सरेण, आठ त्रसरेणु के मिलने से एक रयरेणु, आठ रथरेणु के मिलने से देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्यों का एक बालाप, माठ बालान मिलने से हरि वर्ष के और रम्यक के मनुष्य का एक बालाग्र , हरिवर्ष के और रम्यक के आठ बालाग्र मिलने से हैमवत के और ऐरावत के मनुष्य का एक बालाप, और हेमबत के और ऐरावत के मनुष्य के माठ बालान मिलने से एक लिक्षा, माठ लिक्षा का एक यूक, आठ यूक का एक यवमध्य, माठ यवमध्य का एक अंगुल, छः अंगुल का एक पाद, बारह अंगुल की एक वितस्ति, चौबीस अंगुल की एक रलि (हाथ), अडतालीस अंगुल की एक कुक्षि, छानबे अंगुल का एक दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मूसल होता है। इस धनुष के माप से दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। ___ इस योजन के प्रमाण से आयाम और विष्कम्भ में एक योजन, ऊंचाई में एक योजन और परिधि में सविशेष त्रिगुण एक पल्य हो, उस पल्य में एक दिन, दो दिन, तीन दिन और अधिक से अधिक सात दीन के उगे करोड़ों बालाग्र किनारे तक ठूसकर इस तरह भरे हों कि न उन्हें अग्नि जला सकती हो, न उन्हें वायु हर सकती हो, जो न कुत्थित हो सकते हों, न विध्वंस हो
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy