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________________ बाह का मुकाव अधिक हो गया। यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र की साधना ने आध्यात्मिक साधना को पीछे कर दिया। प्रतिष्ठा और विधान के क्षेत्र में दसों यन्त्रों की संरचना की गई। कोष्ठक आदि बनाकर उनमें विविध मन्त्रों को चित्रित किया जाने लगा। प्रसिद्ध यन्त्रों में ऋषिमण्डल, कर्मदहन, चौबीसी मण्डल, णमोकार, सर्वतोभद्र, सिद्धचक्र, शान्तिचक्र आदि बड़तालीस यन्त्रों का नाम उल्लेखनीय है। १०. जैन स्थापत्य और कला के क्षेत्र में बैन संस्कृति का नमूटा बोगदान रहा है। नमूर्तिकला, वास्तुकला, गुका आदि के कलात्मक प्रतिष्ठान भारत के कोने-कोने में व्याप्त है। बरली (अजमेर) में प्राप्त अभिलेख संभक्तः प्राचीनतम अभिलेख माना जाएगा। अतः इतिहास के निर्माण में जैन साहित्य, कला और संस्कृति को भुलाया नहीं जा सकता। ११. समाज व्यवस्था में समता और समानता का उद्घोष करने वालों में जैनाचार्यों को ही प्रथम श्रेय दिया जा सकता है। कर्मणा व्यवस्था उन्ही की बेन है। लगाम अठवीं शती में वैदिक संस्कृति में मान्य समाजव्यवस्थाको बैन परिवेश में जिनसेन ने स्वीकृत किया और आगे चलकर वह सर्वमान्य हो गई। यज्ञोपवीत आदि वैदिक संस्कारों को भी जैनधर्म का जामा पहना दिया गया। यह आन्तरिक सांस्कृतिक क्रान्ति का एक बिलकुल नवीन चरण था। कला के क्षेत्र को भी इस चरण ने प्रभाषित किया। समन्वय और एकता इस चरम की मूल भावना दी। जैन संस्कृति में कुछ अध्यात्मिक पर्व है जिनका उपयोग शाश्वत सिद्धि के लिये किया जाता है। भाद्रपद में आनेवाला पर्युषण (दशलक्षण) पर्व ऐसे पों में बनगण्य है। उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग आकिंचन और अपरिग्रह इन दश मानवीय धर्मों की साधना कर जीवन की परियुद्धि की जाती है। इसी प्रकार रक्षाबन्धन, दीपावली, श्रुतपञ्चमी, अनन्त-चतुर्दशी आदि और भी अनेक पर्व हैं जिनके साथ बैन इतिहास और संस्कृति जैसे तत्त्व १२. "जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास' नामक प्रस्तुत शोध अन्य में उपयुक्त तत्वों के कतिपय रूपों को हमने उद्घाटित करने का प्रयल किया है। कुछ तत्व ऐसे भी रहे जिनको विश्लेषित नहीं किया जा सका और कुछ ऐसे रहे बिका उल्लेख मात्र करके ही सन्तोष करना पड़ा। जन साहित्य और आँपाणी का तो मात्र वर्गीकरण-माही किया जा सका है। समय बार पर्षकी सीमा एक कविता ही मिलने संकलित बोनसीसी लोन नहीं दिया।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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