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________________ कमर जैन साहित्य : कर्नाटक प्रदेश में जैनधर्म प्रारंभ से ही लोकप्रिय रहा है। गंग, कदम्ब, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि वंशों के राजाओं, सामन्तों, सेनापतियों और मंत्रियों को उसने प्रभावित किया तथा जन साधारण भी उसके लोकरंजक स्वरूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। श्रवण वेलगोला, पोदमपुर, कोपळ, पुनाड, हमच आदि प्राचीन जैन स्थल इतके प्रतीक है। यहाँ की मूर्तिकला के क्षेत्र में जैनधर्म का विशेष योगदान रहा है। प्रमुख जैन साहित्यकार भी इसी क्षेत्र में हुए हैं। आचार्य कुन्दकुन्द, उमास्वामी या उमास्वाति समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलंक, विद्यानंद, अनंतवीर्य, प्रभाचन्द, जिनसेन, गुणभद्र, वीरसेन, सोमदेव बादि आचार्यों के नाम अप्रगण्य हैं। ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों से लेकर बारहवीं शताब्दी तक जैना. चार्यों ने कन्नड साहित्य की रचना की। महाकवि कवितागुणार्णव पम्म (ई. ९४१), कविचक्रवर्ती पोन (ई. ९५०), कविरत्न रत्न (ई. ९९३), वीरमार्तण्ड चामुण्डराय (ई. ९७८), गद्य-पद्यविद्याधर श्रीधर (ई. १०४९), सिद्धान्तचूड़ामणि दिवाकरनन्दि (ई. १०६२), शांतिनाथ (ई. १०६८) नागचन्द्र (ई. ११००), कन्ति (ई. ११००), नयसेन (ई. १११२), राजादित्य (ई.१११०) कीर्तिवर्मा (ई. ११२५), ब्रह्मशिव (ई. ११३०), कर्णपार्य (ई. ११४०), नागवर्मा (ई. ११४५), सोमनाथ (ई. ११५०), वृत्तविलास (ई. ११६०), नेमिचन्द (ई. ११७०), वोप्पण (ई. ११८०), अग्गल (ई. ११८९), आचण्ण (ई. ११९५), बन्धुवर्मा (ई. १२००), पाश्र्वनाथ (ई. १२०५), जन्न (ई. १२ ३०), गुणवर्मा (ई. १२३५), कमलभाव (ई. १२३५), महावल (ई.१२५४) बादि कवियों ने कन्नड़ साहित्य की श्रीवृद्धि की। व्याकरण, गणित, ज्योतिष मायुर्वेद आदि सभी क्षेत्रों में आधुनिककाल तक जैन लेखक कन्नड भाषा में साहित्य-सृजन करते रहे हैं। समूचे जैन कन्नड साहित्य की विस्तृत रूपरेखा देना यहाँ संभव नहीं। यह उसका संक्षिप्त विवरण है। मराठी जैन साहित्य: __ मराठी साहित्य का प्रारंभ भी जैन कवियों से हुआ है। उन्होंने १६६१ ई. से लेखन कार्य अधिक आरम्भ किया । जिनदास, गुणदास, मेघराज, कामराज, सूरिजन, गुणनन्दि, पुष्पसागर, महीजन्द्र, महाकीर्ति, जिनसेन, देवेन्द्रकीति, कललप्पा, भरमापन आदि जैन साहित्यकारों ने मराठी में साहित्य तैयार किया । यह साहित्य अधिकांश रूप से अनुवाद रूप में उपलब्ध होता है। गुजराती बैन साहित्य: गुजराती भाषा का भी विकास अपभ्रंश से हमा है। लगभग १२ वीं धवी .
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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