SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकार अमृतचन्द्र का चतुविशतिजिनेन्द्र संक्षिप्तचरितानि (१२३८ ई.), अमर चन्द्रसूरि का पद्मानन्द महाकाव्य (वि.सं. १२९४), वीरनन्दि का चन्द्रप्रभपरित (११ वीं शती), मानतुंगसूरि का श्रेयांसनावचरित (वि. सं. १३३२); वर्षमानसूरि का वासुपूज्यचरित (वि.सं. १२९९), ज्ञानसागर का विमलनावपरित (वि. सं. १५१७), असग का शान्तिनावपुराण (शक सं. ९१०), माणिक्यचन्द्रसूरि का शान्तिनाथचरित' (वि. सं. १२७६), विनयचन्द्र सूरि का मल्लिनाषचरित, मुनिसुव्रतनावचरित, कीतिराज उपाध्याय का नेमिनाप महाकाम (१४ वीं शती), गुणविजयगणि का नेमिनापचरित (वि. सं. १९६८), वादिराजसूरि (शक. सं. ९४७), माणिक्यचन्द्रसूरि, विनयचन्द्रसूरि, भावदेवमूरि बादि के पावनापपरित, असग का महावीरचरित (वि. सं. १०४५), सकलकीर्ति का वर्धमानचरित वादि अन्य भी उत्तम कोटि के हैं। पक्रवतियों पर भी अनेक संस्कृत काव्य लिखे गये हैं । चौबीस कामदेवों में नल भी एक लोकप्रिय विषय रहा है जिसपर लगभग पन्द्रह काव्य लिखे गये हैं । उनके अतिरिक्त हनुमान, वसुदेव, बलिराज, प्रद्युम्न' नागकुमार, जीवन्धर बीर जम्बूस्वामी पर भी शताधिक संस्कृत काव्यों का प्रणयन हबा है। जीवन्धर का आधार लेकर क्षत्रचूडामणि, गवचिन्तामणि (वादीम सिंह), जीवन्धरचम्मू (हरिचन्द्र) तथा जम्बूस्वामीचरित का आधार लेकर पच्चीसों अन्य लिखेंगये है। प्रत्येकबुदों (करकुण्ड, नग्गई, नमि और दुर्मुख) पर श्वेताम्बर परम्परा में अधिक ग्रन्थ लिखे गये, हैं जबकि दिगम्बर परम्परा में केवल करकण्ड को रचना का विषय बनाया गया है। इनके अतिरिक्त काव्य में कुछ ऐसे भी महापुरुषों के जीवन-परितों को अपने लेखक का विषय बनाया गया है जिनका संबन्ध महावीर, श्रेणिक अथवा जैन संस्कृति से रहा है। ऐसे परितों में धन्यकुमार, शालिमा, पृथ्वीचंद्र,मादक कुमार, जयकुमार, सुलोचना, पुण्डरीक, वरांग श्रेणिक, अभयकुमार, गौतम, मृगापुत्र, सुदर्शन, चंदना, मृगावती, सुलसा बादि व्यक्तियों पर लिखे मये चरित काम्यों की संस्था शताधिक है। आचार्यों को भी चरित काव्यों का विषय बनाया गया है । भद्रबाहु, स्थूलभद्र, कालकाचार्य ववस्वामी, पादलिप्तसूरि, सिरसेन बप्पिट्टि, हरिमासूरि, सोमसुंदरसूरि, सुमतिसंभव, हीरसौभाग्य, विजयदेव, १. पितामधि, देवसूपि नावचन्न सूरि बादि बनेक मेसकों के भी इस नाम से पन्न मिते है। २. महासेनाचार्य सकलकीति, शुभचना, यशोषर मावि के प्रधुम्नचरित उपलब्ध है। ३. मल्लिक, पपर, वामनन्धि बादि के नागकुमारचरित प्राप्त है। आम्मापुत बोरसम्बर को भी प्रत्येक पूडों से सम्बद किया जाता है।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy