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________________ १०७ ४. आचार साहित्य प्राकृत के समान संस्कृत में भी आचार साहित्य का निर्माण हुआ है। उमास्वामी (प्रथम-द्वितीय शती)का तत्त्वार्थसूत्र इस क्षेत्र की प्रथम रचना कही जा सकती है। कुछ विद्वान प्रशमरतिप्रकरण को भी उन्हीं का ग्रन्थ मानते हैं। समन्तभद्र (द्वितीय-तृतीय शती) का रत्नकरण्डश्रावकाचार, अमितगति (वि. सं. १०५०), का श्रावकाचार, अमृतचन्द्रसूरि (१००० ई.) का पुरुषार्थ सिबपाय, सोमदेव का उपासकाध्ययन, माघनन्दि (वि. सं. १२६५) का श्रावकाचार, माशापर के सागर-अनगार धर्मामृत, वीरनंदी (१२ वीं शती) का आचारसार, सोमप्रमसूरि १२-१३ वीं शती) का सिन्दूर प्रकरण और श्रृङ्गारवराग्यतरंगणी, देवेन्द्रसूरि (१३ वीं शती) की संघाचारविषि, रत्लशेखरसूरि (वि. सं. १५१६) का आचार प्रदीप (४०६५ श्लोक प्रमाण), राजमल्ल (१७ वीं शती) कृत लाटीसंहिता आदि ग्रन्थ भी आचार विषयक हैं । भक्तिपरक साहित्य : इनके अतिरिक्त संस्कृत में कुछ ऐसे भी ग्रन्थ लिखे गये हैं जिनका विशेष सम्बन्ध पूजा-प्रतिष्ठा आदि से रहा है । इनकी भी संख्या कम नहीं। ये ग्रन्थ भक्ति परक हैं । पूज्यपाद की भक्तिपरक रचनाये इस क्षेत्र में संभवतः प्राचीतम रही होंगी जिनकी रचना आचार्य कुन्दकुन्द की भक्तिपरक कृतियों के आधार पर हुई । समन्तभद्र का देवागमस्तोत्र जिनस्तुतिशतक व स्वयंभूस्तोत्र, सिद्धसेन की बत्तीसियाँ, अकलंक का अकलंकस्तोत्र, वप्पिट्टि (७४३-८३८ ई.) का चतुर्विशतिजिनस्तोत्र, धनञ्जय (८-९ वीं शती) का विषापहारस्तोत, गुणभद्र (९ वीं शती) का आत्मानुशासन, विद्यानंदि (८-९ वीं शती), का सुपार्श्वनामस्तोत्र, अमितगति (१० वीं शती)कृत सुभाषित रत्नसंदोह, वादिराज (१०-११ वीं शती) कृत एकीभाव स्तोत्र, वसुनन्दि (११ वीं शती) कृत जिनशतक स्तोत्र, मानतुंग (११वीं शती) कृत भक्तामर स्तोत्र, हेमचन्द्र (११-१२ वीं शती) कृत वीतरागस्तोत्र, शुभचन्द्र (१२ वीं शती) कृत मामा व, आशाधर (१२-१३ वीं शती) कृत सहस्रनामस्तोत्र, अहंदास (१३ वीं शती) कृत भव्यजनकंठाभरण, पद्मनन्दि (१४ वीं शती) कृत जरीपल्लीपार्श्वनामस्तोत्र, वैराग्यशतक, विमलकषि (१५ वीं शती) कृत प्रजोत्तररलमाना, दिवाकरमुनि (१५ वीं शती) कृत श्रृङ्गारवैराग्यतरंगणी आदि अन्य भक्तिपरक हैं । भक्तों ने इन संस्कृत ग्रन्थों में अपने इष्टदेव की स्तुति की है।लगभग प्रत्येक अन्य में प्रन्यकारों ने किसी न किसी की स्तुति की है जिनका अभी तक संकमन नहीं हो पाया । सूत्रकृतांग में तो वीरस्तुति नाम का समूचा पम्याव है।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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