SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधायों का जैसा क्रम प्राकृत साहित्य में हमने रखा है वही क्रम यहाँ भी अपना रहे हैं। १. चूर्णि और टीका साहित्य चूर्णि साहित्य प्राय: प्राकृत में लिखा गया है । कुछ चूर्णियां ऐसी हैं जिनमें संस्कृत के कुछ गद्यांश और पद्यांश उद्धृत किये गये हैं। उत्तराध्ययन चूर्णि, आचारांग बूर्णि, सूत्रकृतांगचूर्णि, निशीय विशेष चूर्णि, और वृहत्कल्प बूनि ऐसे ही ग्रन्थ हैं जिनमें अल्पसंस्कृत-मिश्रित प्राकृत का प्रयोग हुआ है । आगम साहित्य पर जो टीकात्मक अथवा विवरणात्मक ग्रन्थ लिखे गये हैं वे संस्कृत में हैं। इस प्रकार की प्रमुख टीकायें और उनके टीकाकार इस प्रकार हैंविशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञवृत्ति श्लोक प्रमाण २२००० " आवश्यक वृत्ति दशवेकालिक वृत्ति जीवाभिगम वृत्ति प्रज्ञापना वृत्ति नन्दि वृत्ति अनुयोगद्वार वृत्ति जिनभद्र (७ वीं शती) हरिभद्र (८ वीं शती) कोटयाचार्य (८ वीं शती) शीलांक (९-१० वीं शती शान्तिसूरि (११ वीं शती) द्रोणसूरि (११-१२ वीं शती) अभयदेव (१२ वीं शती) विशेषावश्यक भाष्य विवरण १३७०० " १२००० १२८५० आचारांग विवरण सूत्रकृतांग विवरण उत्तराध्ययन टीका ओषनियुक्ति वृत्ति स्थानांग बृत्ति समवायांग वृत्ति व्याख्या प्रशप्ति वृत्ति ज्ञाता धर्म कथा विवरण उपासक दशांग वृत्ति अन्तः कुशांगवृत्ति अनुतरोपपातिक दशावृत्ति प्रश्न व्याकरण वृत्ति विपाक वृत्ति श्रीपपातिकवृत्ति १४२५०, ३२७५ 28 १८६१६ ३८०० 288 " ,, "
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy