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________________ भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए कोर की भी आवश्यकता होती है। कोश की दृष्टि से निरुक्तियों का विशेष महत्त्व है। उनमें एक-एक शब्द के भिन्न-भिन्न अर्यों को प्रस्तुत किया गया है । प्राकृत कोशकला के उद्भव और विकास की दृष्टि से उनका समझना आवश्यक है। हेमचन्द्र की देशी नाममाला (७८३ गा.) में ३९७ देशज शब्दों का संकलन किया गया है जो भाषाविज्ञान की दृष्टि से विशेष उपयोगी है। इसके अतिरिक्त धनपाल (सं. १०२९) का पाइयलच्छी नाममाला (२७९ गा.), विजयराजेन्द्रसूरि (सं. १९६० ) का अभिधान राजेन्द्रकोश (चार लाख श्लोक प्रमाण) और हरगोविन्ददास त्रिविक्रमचन्द सेठ का पाइयसद्दमहण्णव (प्राकृत-हिन्दी) कोश भी यहाँ उल्लेखनीय हैं। संवेदन शीलता जागृत करने-कराने के लिए छल का प्रयोग हुवा है। नंदिया (लगभग १० वीं शती) का गाहालक्खण (९६ गा.) और रत्नशंखर सूरि (१५ वीं शती) का छन्दःकोश (७४ गा.) उल्लेखनीय प्राकृत छन्द अन्य हैं। • गणित के क्षेत्र में महावीराचार्य का गणितसार संग्रह तथा भास्कराचार्य की लीलावती प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । इन दोनों का आधार लेकर उनमें उल्लिखित विषयों को लेकर ठक्कर फेरू (१३ वीं शती)ने गणितसार कौमुदी नामक ग्रन्थ लिखा। उनके अन्य ग्रन्थ है- रत्न परीक्षा (१३२ गा.), बज्य परीक्षा (१४९ गावा) बातूत्पत्ति (५७ गा.), भूगर्भप्रकाश आदि । यहाँ यतिऋषम (छठी शती) की तिलोयपण्णत्ति का भी उल्लेख किया जा सकता है जिसमें लेखक ने जैन मान्य'तानुसार विलोक सम्बन्धी विषय को उपस्थित किया है। यह अठारह हजार श्लोक प्रमाण अन्य है। - ज्योतिष विषयक ग्रन्थों में सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति मादि अंगवाहप प्रन्यों के अतिरिक्त ठक्कर फेरु का ज्योतिस्सार (९८ गा.) हरिभद्रसूरि की लम्गसुधि (१३३ गा.), र नशेखरसूरि (१५ वीं शती) की दिणसुदि (१४ गा.) हीर कलश (सं. १६२१) का ज्योतिस्सार (९०.दोहा) आदि अन्य उल्लेखनीय हैं। निमित्तशास्त्र में भौम, उत्पात, स्वप्न, अंग, अन्तरिक्ष, स्वर, लक्षण, व्यञ्जन बादि निमित्तों का अध्ययन किया गया है । किसी अज्ञात कवि का जयपाहर (३७८ गा.), बरसेन का जोणिपाहुड, ऋषिपुत्र का निमित्तशास्त्र (१८७ गा.) दुर्यदेव (सं. १०८४) का रिटुसमुच्चय (२६१ गा.) आदि रचनायें प्रमुख है। अंगविख्या एक बातकक रचना है जिसमें ६० अध्यायों में शुमा निमित्तों का वर्णन किया गया है। ९-१० वीं शती के पूर्व का यह पप सांस्कृतिक
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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