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________________ ३. बबहार में बस उद्देश और ३०० सूत्र हैं। उनमें आहार, बिहार, वैयावृत्ति, साधु-साध्वी का पारस्परिक व्यवहार, गृहगमन, दीक्षाविधान आदि विषयों पर सांगोपांग चर्चा की गई है। इस ग्रन्थ के भी कर्ता भद्रबाहु माने गये हैं। ४. निसीह में वीस उद्देश और लगभग १५०० सूत्र हैं। इनमें गूरुमासिक, लघुमासिक, और गुरुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त से संबद्ध क्रियाओं का वर्णन है । ५. महानिसीह में छः अध्ययन हैं और दो चूलिकाएँ हैं जिनमें लगभग ४५५४ श्लोक होंगे । भाषा और विषय की दृष्टिसे यह अन्य अधिक प्राचीन नहीं जान पड़ता । विनष्ट महानिसीथ को हरिभद्रसूरि ने संशोधित किया और सिखसेन तथा जिनदासमणि ने उसे मान्य किया ।कर्मविपाक,तान्त्रिक प्रयोग, संघस्वरूप, आदि पर विस्तार से वहां चर्चा की गई है। ६. जीतकल्प की रचना जिनदासगणि क्षमाश्रमण ने १०३ गाथाओं में की । इसमें आत्मा की विशुद्धि के लिए जीत अर्थात् प्रायश्चित्त का विधान है। इसमें आलोचना, प्रतिक्रमण,उभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, अनवस्थाप्य, और पारांचिक भेदोंका वर्णन किया गया है । ५. चूलिका सूत्र चूलिकायें अन्य के परिशिष्ट के रूप में मानी गई हैं।इनमें ऐसे विषयों का समावेश किया गया है जिन्हें आचार्य अन्य किसी ग्रन्थ-प्रकार में सम्मिलित नहीं कर सके । नन्दी और अनुयोगद्वार की गणना चलिकास्त्रों में की जाती है । ये सूत्र अपेक्षाकृत अर्वाचीन हैं। नन्दीसूत्र गद्य-पद्य में लिखा गया है । इसमें ९० गाथायें और ५९ गद्यसूत्र हैं। इसका कुल परिमाण लगभग ७०० श्लोक होगा। इसके रचयिता दूष्यगणि के शिष्य देववाचक माने जाते हैं जो देवर्षिगणि क्षमाश्रमण से भिन्न हैं। इसमें पंचज्ञानों का वर्णन विस्तार से किया गया है । स्वविरावली और श्रुतज्ञान के भंद-प्रभेद की दृष्टिसे भी यह अन्य महत्पूर्ण है। अनुयोगद्वार में निक्षेप पद्धति से जैनधर्म के मूलभूत विषयों का व्याख्यान किया गया है । इसके रचयिता आर्य रक्षित माने आते हैं। इसमें नय, निक्षेप, प्रमाण, अनुगम आदि का विस्तृत वर्णन है । ग्रन्थमान लगभग २००० श्लोक प्रमाण है इसमें अधिकांशत: गद्य भाग है। ६. प्रकीर्णक इस विभाग में ऐसे ग्रन्थ सम्मिलित किये गये हैं जिनकी रचना तीर्थंकरों द्वारा प्रवेदित उपदेश के भाषार पर बाचार्यों ने की है। ऐसे मागमिक ग्रन्थों
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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