SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्तमान युग की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में जैन दर्शन वर्तमान युग बौद्धिक कोलाहल और तर्कजाल का युग है। वह श्रद्धा और आस्था के आधार पर टिके हुये शाश्वत आदर्शों को महत्त्व न देकर उन मल्यो तथा तथ्यों को महत्त्व देता है जो प्रयोग और परीक्षण की कसौटी पर खरे उतरते हैं। वह अतीतजीवी विश्वासो और अनागत आदर्श कल्पनाओ मे न विचर कर, वर्तमान जीवन की कठोरताप्रो और विद्रूपताओ से संघर्ष करने मे अपने पुरुषार्थ का जौहर दिखाता है । वह इन्द्रियो और मन द्वारा प्रत्यक्षीकृत सत्य तथा भौतिक जगत् की स्थिति व अवगाहना में विश्वास करता है । त्रिकालवाही सत्यनिरूपण, परलोक सम्बन्धी रहस्यात्मकता व ईश्वरवादिता को नकारता है। समग्रत कहा जा सकता है कि वर्तमान युग भौतिक विज्ञान का युग है । उसकी दृष्टि मे धर्म और आध्यात्मिकता का विशेष महत्त्व नहीं है। धर्म और विज्ञान का संघर्ष गहराई से सोचने पर पता चलता है कि वर्तमान वैज्ञानिक चिंतन मे धर्म को नकारने की जो प्रवृत्ति बढी, उसके मूल में धर्मसाधना के इर्द-गिर्द ईश्वर और परलोक ये दो तत्त्व मुख्य रूप से रहे हैं । विज्ञान का चिन्तन ईश्वर जैसी किसी ऐसी अलौकिक शक्ति मे विश्वास नही करता जो व्यक्ति के सुख-दुख की नियामक हो और न ऐसे छायालोक मे विश्वास करता है जो इस पृथ्वी लोक से परे अनत सुखो को क्रीडा भूमि है। दूसरे शब्दो मे विज्ञान यह स्वीकार नहीं करता कि मानव को कोई दूसरी शक्ति ५३
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy