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________________ जन्य सभी प्रक्रियाएँ पुनः ध्वस और ह्रास की ओर चलती है और अन्त मे विनाश की चरम सीमा को छूती है। प्रत्येक काल चक्रार्द्ध के ६ खण्ड होते हैं जिन्हे 'भारा' कहते है। कालचक्र के आरो के नाम और कालावधि इस प्रकार है उत्सपिरणी काल नाम अवधि अवसर्पिणी काल अवधि नाम १ दुखमदुखमा २१,००० वर्ष १ सुखमसुखमा ४ कोडाकोड सागरोपम २ सुखमा ३ को सा. ३ सुखम दुखमा '२ को सा. २ दुखमा ३. दुखमसुखमा २१,००० वर्ष १ क्रोडाकोड सागरोपम४२,००० वर्प २ क्रो. सा ४. सुखमदुखमा ४ दुखमसुखमा १ को सा ४२,००० वर्ष २१,००० वर्ष २१,००० वर्ष ५. सुखमा ६ सुखमसुखमा ३ क्रो. सा ४ क्रो. सा. ५. दुखमा ६ दुखमदुखमा वर्तमान मे जो आरा चल रहा है वह अवसर्पिणी काल का ५वा आरा 'दुखमा' है । इस आरे का प्रारम्भ भगवान् महावीर के निर्वाण के ३ वर्ष ८ मास पश्चात हआ था। भगवान महावीर का निर्वाण ईसा पूर्व ५२७ में हुआ था। अतः ईस्वी पूर्व ५२४ से ५वे आरे का प्रारम्भ होता है । ईस्वी सन् २०४७६ मे इस पारे का अन्त होगा और छठे आरे का आरम्भ होगा। छठे आरे के प्रारम्भ मे होने वाली स्थिति का विस्तृत विवरण 'भगवती सूत्र' व 'जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति' मे मिलता है। एक उदाहरण इस प्रकार है उस समय दु.ख से लोगो मे हाहाकार होगा। अत्यन्त कठोर स्पर्श वाला मलिन, धूलि-युक्त पवन चलेगा। वह दुःसह व भय उत्पन्न करने वाला होगा। वर्तुलाकार वायु चलेगी, जिससे धूलि आदि एकत्रित होगी। पुन -पुन उड़ने से दशो दिशाएँ रज सहित हो जाएगी। धूलि से मलिन to
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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