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________________ २ मास एक ऋतु ३ ऋतु एक अयन २ अयन एक वर्ष ५ वर्ष एक युग ८४ लाख वर्ष एक पूर्वाग ८४ लाख पूर्वाग एक पूर्व समय का इतना सूक्ष्म परिमाण साधारणत: वुद्धि ग्राह्य नही है और न व्यवहार मे इसका अकन ही सम्भव है। अत एक कल्पना मात्र लगता है, परन्तु वर्तमान में विज्ञान ने समय नापने के लिए जिन आणविक घडियो का आविष्कार किया है, उससे अनुमान लगाना सम्भव हो गया है, यथा: १९६४ मे आणविक कालमान का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। अव एक सैकिण्ड की लम्बाई की व्यवरथा एक सीसियम अणू के 8, १९, २६, ३१, ७७० स्पदनो के लिये आवश्यक अन्तलि के रूप में की गई है। आणविक घडी द्वारा समय का निर्धारण इतनी बारीकी और विशुद्धता से किया जा सकता है कि उससे त्रुटि की सम्भावना ३० हजार वर्षों मे एक सैकिण्ड से भी कम होगी। वैज्ञानिक आजकल हाइड्रोजन घडी विकसित कर रहे हैं जिसकी शुद्धता मे त्रुटि की सम्भावना ३ करोड वर्षों के भीतर एक सैकिण्ड से भी कम होगी। इस प्रकार आज विज्ञान जगत् मे प्रयुक्त होने वाली आणविक घडी सैकिण्ड के नौ अरव उन्नीस करोड छब्बीस लाख इकत्तीस हजार सात सौ सत्तरवे भाग तक का समय सही प्रकट करती है। भौतिक तत्त्वो से निर्मित घडी ही जव एक सैकिण्ड का दस अरववा भाग तक सही नापने मे समर्थ है और भविष्य में इससे भी सूक्ष्म समय नापने वाली घडियो के निर्माण की सम्भावना है अत एक प्रालिका मे असख्यात समय होता है, अब इसमे आश्चर्य जैसी कोई बात नही रह गई है। ___समय की सूक्ष्मता का कुछ अनुमान गति व लम्बाई के उदाहरण से भी लगाया जा सकता है । लम्बाई का प्रतिमान मीटर है परन्तु सन् १९६० मे लम्बाई के प्रतिमान मीटर का स्थान क्रिप्टन-८६ नामक दुर्लभ गैस से ७७
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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