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________________ के लिए जो अहित कर हो । ऐसे कार्यो की सख्या शास्त्रो मे पन्द्रह गिनाई गयी है और इन्हे 'कर्मादान' कहा गया है। इनमे से कुछ कर्मादान तो ऐसे है जो लोक मे निंद्य माने जाते हैं और जिनके करने से सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ट होती है। उदाहरण के लिये जगल को जलाना (इगालकम्मे), जगल से लकडी आदि काटकर बेचना (वणकम्मे) शराब आदि मादक पदार्थों का व्यापार करना (रसवाणिज्जे), अफीम, संखिण आदि जीवननाशक पदार्थों को बेचना (विसवाणिज्जे) सुन्दर केश वाली स्त्रियो का क्रय-विक्रय करना (कैसवाणिज्जे), वनदहन करना (दवागिदावणिया कम्मे), असतजनो अर्थात् असामाजिक तत्वो का पोपण करना (असईजणपोसणिया कम्मे) आदि कार्यों को लिया जा सकता है। साधन-शुद्धि मे विवेक, सावधानी और जागरुकता का महत्त्व है। गृहस्थ को अपनी आजीविका के लिए प्रारम्भज हिसा श्रादि करनी पडती है । यह एक प्रकार का अर्थदण्ड है जो प्रयोजन विशेष से होता है पर विना किसी प्रयोजन के निष्कारण ही केवल हास्य, कौतूहल, अविवेक या प्रमाद वश जीवो को कष्ट देना, सताना अनर्थदण्ड है । 'इस प्रवृत्ति से व्यक्ति को वचना चाहिये और विवेकपूर्वक अपना कार्य-व्यापार सम्पादित करना चाहिये। जैन दर्शन मे साधन शुद्धि पर विशेष बल इसलिये भी दिया गया है कि उससे व्यक्ति का चरित्र प्रभावित होता है। जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन' सूक्ति इस प्रसग मे विशेष अर्थ रखती है। बुरे साधनो से एकत्र किया हुआ धन अन्तत व्यक्ति को दुर्व्यसनो की ओर ढकेलता है और उसके पतन का कारण बनता है। शास्त्रकारो ने इसलिये खाद्य शुद्धि और खाद्य सयम पर विशेष बल दिया है । तप के बारह प्रकारो मे प्रथम चार तप-अनशन, उपोदरी, भिक्षाचर्या और रस-परित्याग प्रकारान्तर से भोजन से ही सम्बन्धित है। साधु की भिक्षाचर्या के सम्बन्ध मे जो नियम बनाये गये है वे भी किसी न किसी रूप मे गृहस्थ की साधन शुद्धि और पवित्र भावना पर ही बल देते है। ४ अर्जन का विसर्जन :-उपर्युक्त विवेचन से यह नही समझा जाना चाहिये कि जैन धर्मावलम्बी आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न नहीं होते। इसके विपरीत ऐसे उदाहरण 'पर्याप्त हैं जो उनकी वैभव सम्पन्नता और श्रीमन्तता को सूचित करते हैं । 'उपासक दशाग' सूत्र मे भगवान् महावीर
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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