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________________ को आवश्यक वस्तुए या Necessity कहा है। परिभोग वस्तुओ मे उन पदार्थों की गणना है जो शरीर को सुन्दर और अलकृत बनाते हैं अथवा जो शरीर के लिए आनन्ददायी माने जाते हैं । अर्थशास्त्रियो ने इन वस्तुओ को आरामदायक (Comforts) और वैलासिक (Luxuries) वस्तुओ की श्रेणी में रखा है। शास्त्रकारो ने उपभोग्य परिभोग्य वस्तुओ को २७ भागो मे विभक्त किया है। इस प्रकार की मर्यादा का उद्देश्य यही है कि व्यक्ति का जीवन सादगीपूर्ण हो और वह स्वय जीवित रहने के साथ-साथ दूसरो को भी जीवित रहने का अवसर और साधन प्रदान कर सके। (४) भगवान् महावीर ने चौथा सूत्र यह दिया कि व्यक्ति प्रतिदिन अपने उपभोग-परिभोग मे आने वाली वस्तुओ की मर्यादा निश्चित करे और अपने को इतना सयमशील बनाये कि वह दूसरो के लिए किसी भी प्रकार बाधक न बने । दिकपरिमाण और उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत जीवन भर के लिए स्वीकार किये जाते हैं। अतः इनमे आवागमन का जो क्षेत्र निश्चित किया जाता है तथा उपभोग-परिभोग के लिए जो पदार्थ मर्यादित किये जाते है, उन सबका उपयोग वह प्रतिदिन नही करता है। इसीलिए एक दिन-रात के लिए उस मर्यादा को भी घटा देना, आवागमन के क्षेत्र और भोग्योपभोग्य पदार्थों की मर्यादा को और कम कर देना, देशावकाशिक व्रत है । अर्थात् उक्त व्रतो मे जो अवकाश रखा है, उसको भी प्रतिदिन सक्षिप्त करते जाना। श्रावक के लिए प्रतिदिन चौदह नियम चिन्तन करने की जो प्रथा है वह इस देशावकाशिक व्रत का ही रूप है। शास्त्रो मे वे नियम इस प्रकार कहे गये हैं - सचित्त दव्व विग्गई, पन्नी ताम्बुल वत्थ कुसुमेषु । वाहण सयण विलेवण, बम्भ दिसि नाहरण भत्तेषु ।। अर्थात्-१ सचित्त वस्तु, २ द्रव्य. ३ विगय, ४ जूते-खडाऊ, ५ पान, ६ वस्त्र, ७ पुष्प, ८ वाहन, ९ शयन, १० विलेपन, ११ ब्रह्मचर्य, १२. दिशा, १३ स्नान और १४ भोजन । इन नियमो से व्रत विषयक जो मर्यादा रखी जाती है, उसका सकोच होता है और आवश्यकतायें उत्तरोत्तर सीमित होती हैं। --
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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