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________________ महावीर की क्रान्ति-चेतना वर्द्ध मान महावीर क्रान्तिकारी व्यक्तित्व लेकर प्रकट हुए। उनमे स्वस्थ समाज-निर्माण और आदर्श व्यक्ति-निर्माण की तडप थी। यद्यपि म्वय उनके लिये समस्त ऐश्वर्य और वैलासिक उपादान प्रस्तुत थे तथापि उनका मन उनमे नही लगा। वे जिस बिन्दु पर व्यक्ति और समाज को ले जाना चाहते थे, उसके अनुकूल परिस्थितियां उस समय (ई. पू छठी शती) नही थी । धार्मिक जडता और अन्ध श्रद्धा ने सबको पुरुषार्थ रहित बना रखा था, आर्थिक विषमता अपने पूरे उभार पर थी। जाति-भेद और सामाजिक वैपम्य समाज-देह मे घाव बन चुके थे। गतानुगतिकता का छोर पकड कर ही सभी चले जा रहे थे। इस विषम और चेतना रहित परिवेश मे महावीर का दायित्व महान् था। राजघराने मे जन्म लेकर भी उन्होने अपने समग्न दायित्व को समझा । दूसरो के प्रति सहानुभूति और सदाशयता के भाव उनमे जगे और एक क्रान्तदर्शी व्यक्तित्व के रूप मे वे सामने आये, जिसने सबको जागृत कर दिया, अपने-अपने कर्तव्यो का भान करा दिया और व्यक्ति तथा समाज को भूलभुलैया से बाहर निकाल कर सही दिशा-निर्देश ही नही दिया वरन् उस रास्ते का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया। क्रान्ति की पृष्ठभूमि परिवेश के विभिन्न सूत्रो को वही व्यक्ति पकड सकता है जो सूक्ष्म द्रष्टा हो, जिसकी वृत्ति निर्मल, स्वार्थ रहित और सम्पूर्ण मानवता के हितो की सवाहिका हो । महावीर ने भौतिक ऐश्वर्य की चरम सीमा को स्पर्श किया था, पर एक विचित्र प्रकार की रिक्तता का अनुभव वे बराबर
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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