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________________ कि व्यक्ति इनका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने के लिए न कर केवल रूढिपालन या प्रदर्शन-प्रशसा प्राप्त करने के लिए ही अधिक करने लगा है। आवश्यकता इस बात की है कि प्राप्त ऊर्जा का उपयोग इन्द्रियो के विषयसेवन के क्षेत्रो को बढाने मे न कर आत्म-चेतना को जागृत व उन्नत करने मे किया जाय । ध्यान-साधना आध्यात्मिक ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत तो है ही, सामाजिक शालीनता और विश्व-बन्धुत्व की भावना वृद्धि मे भी उससे सहायता मिल सकती है। यह जीवन से पलायन नही, वरन् जीवन को ईमानदार, सदाचारनिष्ठ, कलात्मक और अनुशासनवद्ध बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण साधन है। यह एक ऐसी सगम-स्थली है जहाँ विभिन्न धर्मों, जातियो और संस्कृतियो के लोग एक साथ मिल-बैठकर परम सत्य से साक्षात्कार कर सकते है, अपने आपको पहचान सकते हैं । ११६
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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