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________________ किया जाता है-इस प्रकार कि वह जड नही बने वरन् सूक्ष्म होती हुई शून्य हो जाय । रिक्तता न आये वरन् अनन्त शक्ति और प्रानन्द, से भर जाय। ध्यान . शक्ति और शान्ति का स्रोत आज की प्रमुख समस्या शान्ति की खोज की है । शान्ति आत्मा का स्वभाव है। वह स्थिरता और एकाग्रता का परिणाम है। आज का मानस अस्थिर और चचल है । शान्ति की प्राप्ति के लिए मन की एकाग्रता अनिवार्य है पर मन आज चलायमान है । 'योगशास्त्र' मे मन की चार दशाओ का वर्णन किया गया है १. विक्षिप्त दशा-आज विश्व का अधिकाश मन इसी दशा को प्राप्त है । मस्तिष्क के अत्यधिक विकास ने मन को विक्षिप्त बना दिया है । वह लक्ष्यहीन, दिशाहीन होकर इधर-उधर भटक रहा है। वह अत्यन्त चचल, अस्थिर और निर्बल बन गया है । उसे इन्द्रिय-भोगो ने सतृप्ति के बदले दिया है-सत्रास, तनाव और तृष्णा का अलध्य क्षेत्र । कुठा और अत्यधिक निराशा तथा थकान के कारण वह विक्षिप्त हो निरुद्देश्य भटकता है। २. यातायात दशा-विज्ञान ने यातायात और सचार के साधन इतने तीव्र और द्रुतगामी बना दिये हैं कि इस दशा वाला मन गति तो कर लेता है पर दिशा नही जानता। वह कभी भीतर जाता है, कभी बाहर आता है । किसी एक विषय पर टिककर रह नही सकता। वह अवसरवादी और दलबदलू बन गया है। वह किसी के प्रति वफादार नही, प्रतिबद्ध नही, प्रात्मीय नही। वह अपने ही लोगो के बीच पराया है। आज के युग की यह सबसे बडी दर्दनाक मानव त्रासदी है। इस अस्थिरता और चचलता के कारण वह सबको नकारता चलता है, किसी का अपना बनकर रह नही पाता। ३. श्लिष्ट दशा-इस दशा का मन कही स्थिर होने का प्रयत्न तो करता है, पर उसकी स्थिरता प्राय. क्षणिक ही होती है। दूसरे वह अपवित्र, अशुभ व बाह्य विषयो मे ही स्थिर रहने का प्रयत्न करता है । शास्त्रीय दृष्टि से आर्त एव रौद्र ध्यान की स्थिति वाला है यह मन । जहाँ शुभभावना और पवित्रता नही, वहाँ शान्ति कैसे टिक सकती है ? पश्चिम का वैभवसम्पन्न मानस इसी दशा मे है । ११६
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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