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________________ ज्ञान-प्राप्ति मे विनय गुण बहत बडा साधक है। विनीत को सम्पत्ति व अविनीत को विपत्ति कहा गया है। ज्ञान के अवरोधक कारणो की विवेचना करते हुए कहा गया है कि जो ज्ञानी का अवर्णवाद करता है, ज्ञानी की निंदा करता है और उसका उपकार नहीं मानता है, ज्ञान मे अन्तराय डालता है, ज्ञान व ज्ञानी की पाशातना करता है, ज्ञानी से द्वप करता है और ज्ञानी के साथ खोटा विसम्वाद करता है, उसे सच्चा ज्ञान प्राप्त नही होता और जिसे सम्यक् ज्ञान नही होता वह बधनो से मुक्त नही होता। ज्ञान सम्पन्न होना मानव जीवन की सार्थकता की पहली शर्त है। 'उत्तराध्ययन' सूत्र के २६वे अध्ययन ‘सम्यक्त्व पराक्रम' मे गौतम स्वामी भगवान महावीर से पूछते है-भगवन् । ज्ञान सम्पन्न होने से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ? उत्तर मे भगवान् फरमाते है-ज्ञान सम्पन्न होने से जीवात्मा सब पदार्थों के यथार्थ भाव को जान सकता और चतुर्गति रूप ससार-अटवी मे दुखी नही होता । जैसे सूत्र (सूत-डोरा) सहित सूई गुम नही होती, उसी प्रकार सूत्र (आगम ज्ञान-आत्मज्ञान) से युक्त ज्ञानी पुरुष ससार मे भ्रमता नहीं है और ज्ञान, चारित्र, तप तथा विनय के योगो को प्राप्त करता है । साथ ही अपने सिद्धान्त और दूसरो के सिद्धान्त को भली प्रकार जानकर असत्य मार्ग मे नही फसता है। उक्त कथन से स्पष्ट है कि ज्ञान आत्मा का तारक होता है । ज्ञानी कठिनाइयो मे कभी पराजित नहीं होता । वह 'स्व' और 'पर' के कल्याण में समर्थ होता है। आज जो शिक्षा दी जाती है, उसका मुख्य उद्देश्य मस्तिष्क की ऐसी तैयारी है जो जीवन की भौतिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिये अधिक से अधिक धनोपार्जन करने में सक्षम हो । उसको चेतना के विकास अथवा हृदय की सद्वृत्तियो को उदात्त और उन्नत बनाने की चारित्रसाधना व सेवा-भावना से सीधा सम्बन्ध नही है। यही कारण है कि जीवन-निर्माण मे उसकी भूमिका प्रभावी रूप से सामने नही पा पा रही १ नाणसपन्नयाए ण भत्ते । जीवे कि जणयइ ? २ नाणसपन्नयाए ण जीवे सन्वभावाहिगम जणयइ ।। - नारण सपन्ने रण जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणस्सइ॥ . ३ जहा सूई ससुत्ता, पडिया वि न विणस्सइ ।। तहा जीवे ससुत्ते, ससारे न विणस्सइ ॥ उत्तरा २९५६ - १००
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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