SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझकर उनमे समन्वय स्थापित किया जाकर आत्यतिक विरोध मिटाया जा सकता है। २. 'प्रभाव और विघटन की समस्या युद्ध और हिंसा का परिणाम है विपमता और विघटन । ससार मे आज दो तरह के लोग हैं। एक जिनका पू जी और सत्ता पर अधिकार है । दूसरे वे जो गरीबी और दासता का जीवन बिता रहे है । एक ओर वे लोग है जिनके पास अपार वैभव और भौतिक सम्पदा है, आवश्यकता से अधिक इतना सग्रह है कि वह उनके स्वय के जीवन के लिये नही वरन् आने वाली कई पीढियो के लिये पर्याप्त है । दूसरी ओर वे लोग है जिनके पास दो जून खाने को रोटी नहीं, अपने शरीर को ढकने के लिये मोटा कपडा नही, और रहने के लिये टूटी-फूटी झोपडी नही। इस विषम स्थिति से निपटने के लिये समाजवादी-साम्यवादी बडी-बडी योजनाएं बनाई जाती हैं। वैज्ञानिक उपकरणो का प्रयोग किया जाता है । औद्योगिक उत्पादनो मे तीव्रता लायी जाती है। पर फिर भी अभाव वैसा का वैसा बना रहता है । इसका मुख्य कारण है कृत्रिम अभाव का पैदा होना । वास्तविक अभाव की स्थिति को तो उत्पादन की प्रक्रिया तेज करके, जनसख्या को नियन्त्रित करके मिटाया जा सकता है पर अर्थलोभ के कारण, अधिकाधिक लाभ प्राप्ति के कारण बाजार मे जो कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है उसका समाधान राजनैतिक व्यवस्था से सभव नही। इसका उपचार व्यक्ति के स्वभाव और दृष्टिकोण को बदलने मे, निहित है। भगवान् महावीर ने इसका समाधान बताते हुए कहा-इच्छाएँ । आकाश के समान अनन्त हैं।' इच्छाओ की पूर्ति करने मे सुख नही है। सुख है इच्छाओ को छोडने मे। इच्छाओ को छोडना आवश्यकतानो को। कम करने पर निर्भर है। इसलिये उन्होने गृहस्थो को उपदेश दिया कि अपनी आवश्यकताओ को सीमित करो। आवश्यकताएँ सीमित होने से अधिक लाभ प्राप्त करने और पूंजी केन्द्रित करने की भावना न रहेगी। सद्गृहस्थ निश्चय करे कि वह इतने पदार्थों से अधिक की इच्छा नहीं करेगा। न इनकी प्राप्ति के लिये अमुक दिशाओ के अतिरिक्त अन्यत्र १ इच्छा हु आगास समा अणतिया-उत्तराध्ययन ६/४८ ६२
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy