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________________ [४४ जैन-दर्शन गुप्ति इन महाव्रतों की रक्षा करने के लिये मुनि लोग तीन गुनियों का पालन करते हैं । गुप्तियां तीन हैं-मनोगुप्ति, वचन गुमि, काय गुप्त । मनको वशमें करना मनसे किसी प्रकारकी क्रिया न होने देना, एकाग्रचित्त होकर मनको-आत्म चितवन में लगाना मनोनि है। वचनको वशमें रखना, वचन से किसी प्रकार की क्रिया न होने देना वचन गुप्ति है। इसी प्रकार कायको वशमें रखना, कायसे किसी प्रकार की क्रिया न होने देना काय गुप्ति है। कर्मों का आस्रव इन मन वचन कायसे ही होता है। यदि मन वचन काय तीनों वशमें हो जाय, इनसे कोई क्रिया न हो तो कर किसी भी प्रकार के कर्मोंका आस्रव नहीं हो सकता। इस प्रकार गुप्तियों का पालन करने से महावनों की पूर्ण रक्षा होती है। समिति ऊपर जिन गुप्तियों का स्वरूप लिखा गया है उनका पालन प्रत्येक समय में नहीं हो सकता; इसलिये जिस समय इनका पालन नहीं हो सकता उस समय मुनि लोग समितियों का पालन करते है। समितियां पांच हैं। ईर्या समिति, भाषा समिति, एपणा समिति, आदाननिक्षेपण समिति और उत्सर्ग समिति । ईर्या समिति-जिस समय मुनि आहार के लिये गमन करते हैं या तीर्थ यात्रा आदि के लिये नमन करते हैं उस समय सामने
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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