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________________ ___ जन-दर्शन [२२८ इसके सिवाय एक बात यह है कि वेद सब से प्राचीन माने जाते हैं । वेदांती लोग तो यहां तक कहते हैं कि ये वेद स्वयं ईश्वर के बनाये हुए हैं। जिस ईश्वर ने सृष्टि बनाई उसीने ये वेद बनाये। पर वेदों में भी वर्तमान काल के हमारे तीर्थङ्करों का नाम आतथा अनेक स्थलों पर अनेक तीर्थदरों के नाम आते हैं । इससे यह भी स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि हमारे वर्तमान तीर्थकर भी इन वेदों से पहले के हैं फिर पूर्व उत्सर्पिणी काल में होने वाले तीर्थदरों की तो वात ही क्या है इससे भी सिद्ध होता है कि जिस प्रकार यह संसार अनादि उसी प्रकार यह जैन धर्म भी अनादि है। श्रावकों की दिनचर्या मुनियों का समस्त समय ध्यान तपश्चरण में हो जाता है। जव मुनि चर्या के लिये गमन करते हैं अथवा तीर्थयात्रा आदि के लिये दूर देशों के लिये गमन करते हैं उस समय भी वे समितियों का पालन करते हैं । सामायिक के समय सामायिक करते हैं, चर्या के समय सनितियों का पालन करते हुए चर्या करते हैं और शेप समय में त्वाध्याय करते हैं । रात्रि में मौन धारण करते हैं। इस प्रकार उनका समस्त समय ध्यान तपश्चरण वा स्वाध्याय आदि में ही व्यतीत होता है । इसलिये उनके दिनचर्चा की कोई आवश्यकता नहीं है । परन्तु गृहस्थों को लौकिक और पारलौकिक दोनों ही कार्य करने पड़ते हैं। अतएव किस
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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