SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० ] सेन-दर्शन श्रुति, सन्मति, क्षेमंकर, क्षेमंधर, सीकर, सीमंधर, विमलबाइन, चतुप्मान, यशस्वी, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित, नाभि राय ये चौदह कुलकर हुए हैं। अवसर्पिणो कालके पांचव कालका नाम दुःपमा है। यह इकईस हजार वर्ष का है। इसके प्रारम्भ में मनुष्यों को श्रायु एक सौ वीस वर्प, शरीर की ऊंचाई सात हाय है। दिन में दो बार भोजन करते हैं । छठे कालका नाम दुःपमा दुःपमा है। यह भी इकईस हजार वर्ष का होता है । इसके प्रारंभ में मनुष्यों की आयु वीस वर्प और शरीर को उंचाई एक हाथ की होती है। इस छठे कालके अंत में खंड प्रलय होतो है। जो भरत और ऐरावत क्षेत्र के अंतर्गत आये क्षेत्र में होती है। उस समय अग्नि पानी आदिकी प्रबल वर्षा होती है। उस आपत्ति से डरकर कितने ही जीव अकृत्रिम पर्वतों की गुफाओं में चले जाते हैं तथा प्रत्येक जाति के वहत्तर जोडा जीवों को देव उठाकर कंदरायों में रख देते हैं । वाकी जीव सब मर जाते हैं। प्रलय शांत होने पर फिर वे सब जीव निकलकर चारों ओर बस जाते हैं और उनकी संतान से फिर आवादी बढ़ जाती है । प्रलयकाल के बाद ही उत्सर्पिणी काल का प्रारंभ होता है और उसमें दुःपमा दुःपमा काल, दुःपमा काल दुःपमा सुपमा काल, आता है। स तीसरे दुःपमा सुपमा कालमें फिर तीर्थकर चक्रवर्ती आदि महापुरुप होते हैं । इसके बाद सुपमा दुःपमा, सुपमा और सुपमा, सुपमा काल पाता है। जो क्रम से जघन्य भोग भूमि, मध्यम भोग भूमि और उत्तम भोग भूमि का
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy