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________________ [ १५४ जैन-दर्शन नान को ढक ले, अवधिनानावरण-जो अवधिनान को ढक ले, मनःपर्ययज्ञानावरण-जो मनः पर्यय नानको ढक ले, केवलनानावरण-जो केवल नान को ढक ले । दर्शनावरण-इसके नौ भेद हैं यथा यजुदर्शनावरण-जो चनु से होने वाले दर्शन को ढकलेन होने दे। श्रचक्षुदर्शनावरण-जो शेष र इन्द्रियों से होने वाले दर्शन को ढकले । ( स्पर्शन रसना त्राण श्रोत्र इन चारों इन्द्रियों में होने वाले सामान्य अवबोध को अचक्षु दर्शन कहते हैं) अवधिदर्शनावरण -जो अवधि दर्शन को डकले । केवलदर्शनावरण-जो केवल दर्शनको ढकले । निद्रा-जिसके उदय से नींद बाजाय । निद्रानिद्रा-जिसके उदय से नींद लेने पर भी फिर नोंत्र आजाय । प्रचला-जिसके उदय से बैठे ही बैठे सो जाय । प्रचला चला-जिसके उदय से बैठे ही बैठ गहरी नींद श्राजाय लार टपकने लगे। स्त्यानगृद्धिजिसके उदय से ऐसी नोंद आये जिसमें अपनी शक्ति के बाहर काम करले और जगने पर मातम भी न पड़े। इस प्रकार दर्शनावरण के नौ भेद हैं।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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