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________________ जैन-दर्शन १३०] - कार्यों में अपनी सम्मति नहीं देता वह अनुमति त्याग प्रतिमाको धारण करनेवाला श्रावक कहलाता है। ___ उद्दिष्टत्याग प्रतिमा-ऊपर की दशों प्रतिमाओं को पूर्ण रूप से पालन करने वाला जो श्रावक अपने घर से निकल कर मुनियों के साथ बन में रहता है, गुरु वा आचार्य से विधि पूर्वक दीक्षा लेता है और उद्दिष्टत्याग व्रतको धारण करता है। इसके सिवाय जो भिक्षा भोजन करता है और मुनियों के समान तपश्चरण करता है वह उद्दिष्टत्याग प्रतिमा को धारण करनेवाला कहलाता है। __ जो आहार वस्त्र वा अन्य कोई पदार्थ विशेष रूप से किसी विशेष व्यक्ति के लिये बनाया जाता है उसको उद्दिष्ट कहते हैं। जैसे मेरे लिये ही जो भोजन बनाया गया है वह मेरे लिये उहिष्ट है । ग्यारह प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक ऐसे उद्दिष्ट का सर्वथा त्यागी होता है । वह तो मुनियों के समान चर्या के लिये निकलता है और जहां उसका पडगाहन हो जाता है वहीं पर नवधाभक्तिपूर्वक आहार कर लेता है। इस प्रतिमा को धारण करनेवाले दो प्रकार के होते हैं, एक क्षुल्लक और दूसरे अहिलक । जो लंगोटी और एक खंड वस्त्र रखते हैं तथा पीछी कमण्डल, रखते हैं उनको क्षुल्लक कहते हैं । यह तल्लक कैंची वा उस्तरा से बाल बनवाता है। दूसरा अहिलक श्रावक बाल नहीं बनवाता किंतु मुनिके समान , केशलोच करता है, एक लंगोटी रखता है पीछी कमंडल. रखता है तथा लंगोटी के सिवाय और किसी प्रकार का वस्त्र नहीं रखता।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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