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________________ ११३] - - - जैन-दर्शन व्रतको सुरक्षित रखने के लिये ही सत्यभाषण करता है । इसीलिये यदि उसके सत्य भाषण करने से किसी जीवका घात होता हो तो वह ऐसा सत्यभापण भी नहीं करता है । मिथ्या उपदेश देना, एकांत में कही हुई वा की हुई बातों को प्रकट करना. झूठे लेख लिखना, धरोहर मारना और किसी तरह भी किसी की छिपी हुई बातको जानकर प्रकट कर देना सत्याणुव्रत के दोष हैं। सत्यागुव्रती को इनका भी त्याग कर देना चाहिये। अचौर्याणुव्रत-रागद्वेष पूर्वक किसी के बिना दिये हुए पदार्थों को लेलेना चोरी है । किसीका कोई पदार्थ रक्खा हो, गिर गया हो, कोई 'भूल गया हो, कैसा ही हो उसको बिना दिये हुए लेना वा उठाकर दूसरे को देना चोरी है। ऐसी चोरी का त्याग कर देना अयौर्याणुव्रत है । चौरी का प्रयोग बताना, चौरी के पदार्थों को लेना वा घरमें रखना, अधिक मूल्य के पदार्थों में कम मूल्य के पदार्थ मिला कर बेचना, तौलने के बांट, नापनेके गज वा वर्तन आदिको छोटेबडे रखना, लेने के लिये बडे और देने के छोटे रखना और राज्य के विरुद्ध लेन देन करना इस श्राचौर्या णुव्रत के दोष हैं । आचौर्याणुव्रत को धारण करने वाले श्रावक ... को इनका भी त्याग कर देना चाहिये । । . ब्रह्मचर्याणुव्रत-देव शास्त्र गुरु पंच और आग्नि की साक्षी पूर्वक अपनी जाति की जिस कन्या के साथ विवाह किया है उस ... “. स्त्रीको छोड कर अन्य समस्त स्त्रियों को माता बहिन
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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