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________________ ११०] नहीं। उस डाक्टर का प छा करने के लिये जैन-दर्शन होना सबसे बड़ा पाप है । इसीलिये आचार्यों ने हिंसा का लक्षण राग द्व प रूप परिणामों को होना बतलाया है । अहिंसा का लक्षण राग द्वष आदि परिणामों का न होना बतलाया है । हिंसा के मूल कारण राग द्वप हैं और राग द्वप का न होना अहिंसा है। कोई डाक्टर किसी फोडाको अच्छा करने के लिये उसमें चीरा लगाता है, उस डाक्टर का परिणाम अच्छा करने का है, मारने का नहीं । ऐसी अवस्थामें यदि वह रोगी मर भी जाय तो भी उस डाक्टर को हिंसाका पाप नहीं लगता। यदि कोई मनुष्य किसी के मारने के परिणाम करता है तो उसको हिंसाका पाप अवश्य लग जाता है चाहे वह उस के मारने के प्रयत्न से ही बच जाय । यहां पर इतना और समझ लेना चाहिये कि परिणामों में जैसी तीव्रता वा मंदता होती है वैसा ही पाप उनको लगता है। तीव्र परिणामें से तीव्र पाप लगता हैं और मंद परिणामों से मंद पाप लगता है। ___ मानलो कि किसी जीवको चार पांच आदमियों ने मिलकर मारा । उनमें से जिसके मारने के तीन परिणाम होंगे उसको तीन पाप लगेगा और जिसके मंद परिणाम होंगे उसको थोड़ा पाप लगेगा। यदि उनमें से किसी के परिणाम उसको बचाने के होंगे तो उसे वह पाप नहीं लगेगा। कोई एक आदमी किसी जीवको मारडालता है और उसको परोक्ष सहायता अनेक मनुष्य करते हैं वा उसकी अनुमोदना तो उसे वह उनमें से किस मद परिणाम होसम होंगे उसको लाकर पाप नहीं लगेगापरिणाम उसको बना थोड़ा पाप
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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