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________________ जैन-धर्मकी प्राचीनता। इस धर्मकी प्राचीनताके चिह्न मिलते जा रहे, उपलब्ध मथुरा-स्तूप अरु उदयागिरी बतला रहे। प्राचीनता इसकी जगत भर कर रहा स्वीकार है, इस धर्मका ही आजलों देखो ऋणी संसार है। हां,जव न पृथ्वी पर कहीं भी,बौद्ध.वैदिक धर्म थे, कल्याण प्रद सर्वत्र तव इस धर्मके शुभ कर्म थे। जितने पुराने जैन-मन्दिर आज मिलते हैं यहां, उतने पुराने अन्य धौके भला मिलते कहां ? ३१ था राष्ट्र धर्म कभी यही सिद्धान्त अति अभिरामथे, बलवान थे, विख्यात थे,गुणधाम,थे शिवधाम थे। इस धर्मका ही मुख्यतः नित केन्द्र भारतवर्ष था, क्या ज्ञानमें क्या ध्यानमें सबमें बढ़ा उत्कर्ष था। चमका न धर्मादित्य केवल सर्व हिन्दुस्तानमें, १खंडगिरी उदयागिरी क्षेत्रपर २५०० वर्षका महाराजा खारवेल के समयका प्राचीन शिला लेख है।
SR No.010211
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunbhadra Jain
PublisherJinwani Pracharak Karyalaya Kolkatta
Publication Year1935
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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