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________________ क्षमता विपुल समता दयासे युक्त उनके चित्त थे। दानी नहीं श्रेयांस१ सा इस भव्य भूतलपर हुआ, ज्ञानी कहो भरतेशरसा कब अन्य इस भूपर हुआ देखो, दशानन३ और बाली४से यहां बलवान थे, थे पार्थ से रणवीर भट,जिनके भयंकर वाणथे। १ कर्मभूमिको आदिमें श्रेयान्स महाराज दान-तीय के प्रवर्तक हुए हैं। इन्होने भगवान आदिनाथको इक्षुरसका दान दिया था। दान थोड़ा था परन्तु प्रगाढ़ भक्तिसे दिया गया था। जिससे देवोंने पंचाश्चर्य किये थे। २ चक्रवर्ती भरत त्रैलोक्य पति भगवान आदिनाथके पुत्र थे। इन्हें सभी सुख सुलभ थे। राज्य करते हुये महाराज भरत सदेव आत्म कल्याणपर विशेष लक्ष्य रखते थे। वे सांसारिक सुखोंमें आसक्त नहीं थे । इनको दीक्षा लेते ही केवलज्ञान उत्पन्न होगया था। शानन लडाका चिन्शाली अधिपति था। उसने अपने पराक्रमसे इन्द्रको (रावणके समयका पराक्रमी विद्याधर) जीव लिया था। बड़े २ शूरवीर इसका नाम सुनकर कांप उठते थे। इसने अपनी शकिसे पर्वतराज कैलाशको भी हिला दिया था। वालिदेव किस्किन्या नगरके अधिपति थे। इन्हें संसारसे बैराग्य हो गया। ये अपने छोटे भाई सुग्रीवको राज्य देकर तपस्या करने लगे। एक दिन वालि देव कैलाशगिरिपर ध्यानालढ़ थे। रावण कहीं भ्रमणा जा रहा था, उसका विमान वालिदेव मुनिराज
SR No.010211
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunbhadra Jain
PublisherJinwani Pracharak Karyalaya Kolkatta
Publication Year1935
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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